यादें भी नहीं सहेज सकी 'शिक्षा'
जागरण संवाददाता, मुरादाबाद : तीन सौ साल तक देश गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा रहा। अंग्रेजी हुकूमत की बर
जागरण संवाददाता, मुरादाबाद : तीन सौ साल तक देश गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा रहा। अंग्रेजी हुकूमत की बर्बरता देश ने देखी। मुरादाबाद भी इससे अछूता नहीं रहा। यहां ¨हदू व मुस्लिम दोनों धर्म के लोगों ने पूरी सहभागिता दिखाई। अंग्रेजों से लोहा लिया। वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की एक धूरी मुरादाबाद बन गया। कई माह तक मुरादाबाद आजाद रहा, लेकिन इसके बाद हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। ये सब यादें हैं। इन्हें सहेजना जरूरी था, पर सहेजा नहीं गया। जिले में एक अदद संग्रहालय की जरूरत थी, लेकिन इसके लिए न सरकार ने कदम बढ़ाए और न ही निजी स्तर पर ही कार्य हुए। उस दौर के शिलालेख गुम हो गए। सामान बिखर गए। यदि कुछ बचा तो अक्षरों के रूप में उनकी यादों को सहेजने वाली किताब। इतिहास के पन्नों पर ही आज बच्चे शहीदों की वीर गाथाओं को पढ़ने को मजबूर हैं। महानगर में कई हिस्सों में महापुरुषों की प्रतिमाएं भी लगाई गई हैं। इनकी देखरेख करना भी लोग मुनासिब नहीं समझते। उदाहरण के तौर पर कंपनी बाग स्थित गांधी पार्क को लेते हैं। इस पार्क में पीतल की धातु में महात्मा गांधी की आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई। एक छोटे से पार्क में लगी इस प्रतिमा के आसपास किसी ने पौधरोपण को भी नहीं सोचा। इसके आसपास ठेला वाले अपनी दुकानें सजाते हैं। इन दुकानों के पास चाट की प्लेट तथा अन्य गंदगी पड़ी मिल जाएगी। प्लास्टिक के गिलास भी यहां पड़े मिलेंगे। इस छोटे से पार्क के अंदर भी आपको मिलेगी। गांधी जी की याद भी लोगों को दो अक्टूबर को ही आती है। उनके जन्म दिन को मनाया जाता है। इसके एक दिन पहले मूर्ति भी साफ होती है और आसपास की भी सफाई कर दी जाती है। पर यह न नियमित बन पा रहा है और न ही नगर निगम अपनी आदत में ही इसे शुमार कर पा रहा है।
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तहसीलों का हाल बेहाल
-तहसीलों में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े दस्तावेज तो नहीं मिलेंगे, लेकिन शिलालेख पत्थरों पर खुदे दिख जाएंगे। पर इन्हें पढ़ने की फुर्सत किसी के पास नहीं मिलेगी। इनकी देखरेख की बात करना ही बेकार है। चूंकि तहसीलों में ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोगों का आना-जाना होता है। ऐसे में स्वतंत्रता संग्राम की यादों को हर व्यक्ति तक पहुंचाने का उद्देश्य भी पूरा नहीं हो पाता।
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यादें हैं लेकिन सहेजा नहीं गया
-मुरादाबाद को कई माह तक आजाद रखने वाले नवाब मज्जू खां के परपोते मुहम्मद अली खां उर्फ अली मियां कहते हैं कि हमने काफी काम किया था। इतिहास को खंगाला था। जो पता चला वह चौंकाने वाला था। जब नवाब साहब को अंग्रेजों ने यातना देकर मार दिया तो उनकी कोठी लूट ली गई। कुछ भी नहीं बचा था। हां कुछ किताबें जरूर बच गई थीं। हमारा सपना उनकी याद में मुरादाबाद में कुछ करना है। हम यहां संग्रहालय ही नहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी बेहतर काम करने की इच्छा रखते हैं।
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'ऐतिहासिक धरोहरों को संजोने के लिए जिला प्रशासन प्रतिबद्ध है, हाल ही में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भवन का जीर्णोद्धार हुआ है। बाकी ऐतिहासिक विरासतों को भी सहेजने का काम किया जाएगा।
-दीपक अग्रवाल, जिलाधिकारी, मुरादाबाद।