रेनी डे तक सिमटी शिक्षा के मंदिरों की सोच
मुरादाबाद : जिले में वर्षा के पानी का सबसे ज्यादा दुरुपयोग शिक्षा के मंदिरों से होता है। जिले में बे
मुरादाबाद : जिले में वर्षा के पानी का सबसे ज्यादा दुरुपयोग शिक्षा के मंदिरों से होता है। जिले में बेसिक, माध्यमिक तथा एमजेपी रूहेलखंड विवि से सम्बद्ध स्कूल व कॉलेजों की संख्या दो हजार से अधिक है। इसमे से डेढ़ दर्जन ही ऐसे कॉलेज हैं, जहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा है।
शुरुआत प्राइमरी व पूर्व माध्यमिक स्कूलों की करते हैं। जिले में 1200 प्राइमरी और 526 पूर्व माध्यमिक स्कूल हैं। प्रत्येक स्कूल की छत का क्षेत्रफल औसतन 100-100 मीटर है। मुरादाबाद में औसत बारिश 500 से 600 मिलीमीटर रिकार्ड की जाती है। ऐसे में प्राइमरी व जूनियर हाईस्कूलों की छतों से 1726 लाख लीटर जल हर बरसात में बर्बाद होता है। इसी प्रकार माध्यमिक शिक्षा विभाग से संचालित स्कूलों की संख्या 370 है। यहां का क्षेत्रफल औसतन 1000 मीटर भी माना जाए तो कुल 850 लाख लीटर पानी बर्बाद होता है। महानगर के 17 कॉलेजों में रोटरी क्लब के प्रयासों से रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया है, जो ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। हायर एजूकेशन के तहत महानगर में पांच प्रमुख डिग्री व पीजी कॉलेज हैं। एमएच पीजी कॉलेज को छोड़ दें तो औसतन 1000-1000 मीटर की छत वाले इन कॉलेजों से भी हर साल 40 लाख लीटर जल या तो नालियों में बह जाता है या आसपास फैलता है।
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एक नजीर एमएच कॉलेज
काफी बड़े भूभाग में फैला महाराजा हरिश्चंद्र पीजी कॉलेज। वर्ष 2012 में यहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग लगाने की कवायद शुरू हुई। प्रस्ताव बनाकर भूगर्भ जल विभाग को भेजा गया। विभाग ने सक्रियता दिखाई और शासन से पैसे की डिमांड की। पैसा मिला और वर्ष 2013 में प्रोजेक्ट बनकर तैयार हो गया। कॉलेज के 100 मीटर क्षेत्रफल के वर्षा जल का सदुपयोग होता है। यानी इस कॉलेज के सहारे 80,000 लीटर पानी हर बरसात में जमीन को लौटाने का कार्य हो रहा है। प्रबंधक काव्य सौरभ रस्तोगी कहते हैं कि अन्य कॉलेजों को भी इसी तर्ज पर कार्य करें। हमें प्रकृति का सहभागी बनना चाहिए।
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20 लाख लीटर जल सहेजता है पुलिस अकादमी
डॉ. भीमराव अम्बेडकर पुलिस अकादमी जिले में सर्वाधिक वर्षा जल संरक्षण का केंद्र बन चुका है। पिछले साल भूगर्भ जल विभाग के आर्थिक मदद से 20 लाख रुपये से 3000 मीटर के क्षेत्रफल में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने में यहां खर्च हुए। इसके जरिए प्रति वर्ष 20 लाख लीटर वर्षा जल को शुद्ध करते हुए जमीन को सौंपने का कार्य हो रहा है। इससे गदगद अकादमी के अफसरों ने पुलिस आफिसर्स मेस, गेस्ट हाउस के लिए भी सिस्टम लगाने को लेकर अपनी सहमति का पत्र भूगर्भ जल विभाग को कुछ दिन पहले सौंपा है। अब विभाग धन के इंतजार में है।
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इनसेट...पक्की छत की ऐसे करें गणना..
यदि छत का क्षेत्रफल 100 वर्ग मीटर है और वर्षा जल की मात्रा 1000 मिमी है। इस आधार पर वर्षा जल की उपलब्धता तथा रेन वाटर हार्वेस्टिंग पोटेंशियल ऐसे निकालेंगे।
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वर्षा जल की कुल उपलब्धता
100 * 1000/ 1000 = 100 घन मीटर
या 1,00,000 लीटर
(सिस्टम लगने के बाद 80,000 लीटर पानी जमीन में चला जाता है।)
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सभी प्रधानाचार्यो को निर्देश
कमिश्नर विपिन कुमार द्विवेदी के निर्देश पर जिलाधिकारी दीपक अग्रवाल ने सभी प्रधानाचार्यो को निर्देशित किया है कि वे बच्चों को वर्षा जल संरक्षण को लेकर जागरूक करें। उनकी चित्रकला प्रतियोगिता के आयोजन के साथ ही रैली निकाले। हर बच्चें को वर्षा जल संरक्षण के उपाय बताए। यदि बाल मन को हमने मोड़ दिया तो आने वाला कल जल-जल होगा।
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रोटरी क्लब मुरादाबाद मिड टाउन ने भी किया था प्रयास
रोटरी क्लब मुरादाबाद मिड टाउन से जुड़े अंकुर अग्रवाल व उनकी टीम ने वर्षा जल संरक्षण को लेकर बेहतर कार्य किया है। इनके क्लब ने रोटरी क्लब ऑफ डायगो गैंग डांग कोरिया, रोटरी क्लब ऑफ स्प्रिंग फील्ड अमेरिका और रोटरी क्लब ऑफ कैंब्रिज नार्थ की मदद से महानगर के 17 स्कूलों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाया। इसमें अंबिका प्रसाद इंटर कालेज, डिप्टी जगन्नाथ इंटर कालेज, सरस्वती शिशु मंदिर गुलाबबाड़ी, प्रभादेवी गर्ल्स इंटर कालेज, राजकला पीडीए गर्ल्स कालेज, सरस्वती शिशु विद्या मंदिर बनवटा गंज, शंभूनाथ दूबे सरस्वती शिशु मंदिर, बलदेव आर्य कन्या इंटर कालेज, चित्रगुप्त इंटर कालेज, कौशल्या गर्ल्स इंटर कालेज, मानसरोवर इंटर कालेज, महाराजा अग्रसेन इंटर कालेज, मुरादाबाद इंटर कालेज, एनआर चिल्ड्रेन एकेडमी पाकबड़ा तथा साहू रमेश गर्ल्स इंटर कालेज शामिल रहे।
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यह बात सही है कि स्कूलों से हर मानसून में तकरीबन 2616 लाख लीटर वर्षा जल तो बर्बाद होता ही है। इस तथ्य को कमिश्नर व डीएम के संज्ञान में लाएंगे। इसके अलावा विभाग का बजट बढ़ाने के लिए भी अनुरोध किया जाएगा। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है कि लोग स्वयं जागरूक हो। यदि नए भवन में यह सिस्टम लगे। स्कूल वाले भी अब भी इसे लगाने की पहल कर दें तो तस्वीर और भी बेहतर होगी।
सुरेश कुमार मल्होत्रा, अधिशासी अभियंता, भूगर्भ जल विभाग
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जो नए भवन बन रहे हैं। उसमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगे हैं। मॉडल स्कूल डिलारी ब्लाक के जटपुरा तथा बनियाखेड़ा के नरायनपुरा देवा के साथ ही कुचावली के न्यू राजकीय हाईस्कूल में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा है। पूर्व के बने इंटर कॉलेजों में यह व्यवस्था अभी लागू नहीं हो सकी है। शासन से यदि कोई दिशा निर्देश आता है तो इसका पालन कराया जाएगा।
डॉ. आइपीएस सोलंकी, जिला विद्यालय निरीक्षक
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स्कूलों के सामने गड्ढा बनाकर छत तथा हैंड का पानी उसमें डाला जाता है। इसके सहारे वह जमीन के अंदर जाता है। यह प्रक्रिया उतनी सफल नहीं है, जितना रहना चाहिए। मंडल स्तर पर जल्द ही एक प्रोजेक्ट बनाकर बेसिक शिक्षा सचिव को प्रेषित किया जाएगा।
अशोक कुमार सिंह, मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक बेसिक
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जिले में जो भी प्राइमरी स्कूल बने हैं। वह वर्षो पुराने हैं। इनमें से किसी में भी वर्षा जल संचयन के लिए कोई भी सिस्टम नहीं लगा है। नए भवन यदि स्वीकृत हुए या बने तो हमारी कोशिश होगी कि उनमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम जरूर लगाया जाए।
मुन्ने अली, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी
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हमारे कॉलेज में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है। चूंकि कॉलेज काफी पुराना है ऐसे में इस दिशा में कभी सोचा ही नहीं गया, लेकिन यह एक बेहतर सिस्टम है। हम प्रयास करेंगे कि इसे लगाया जाए।
मधुबाला त्यागी, प्रधानाचार्य
राम चंद्र शर्मा कन्या इंटर कॉलेज
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जब से हमारे कॉलेज में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा है, वर्षा जल का संरक्षण हो रहा है। हर साल लाखों लीटर वर्षा के पानी को हम छानकर जमीन के नीचे पहुंचा रहे हैं। पानी बर्बाद नहीं होता है तो मन को भी सकून मिलता है।
अर्चना साहू, प्रधानाचार्य
साहू रमेश कुमार कन्या इंटर कॉलेज
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काफी पहले ही हमने रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया था। वर्षा का जल संरक्षित करने के साथ ही हम इसे छानकर जमीन के अंदर पहुंचा रहे हैं। अन्य इंटर कॉलेजों को भी सक्रियता दिखाते हुए इस महाभियान में सहयोगी बनना चाहिए।
डॉ. देवेंद्र सिंह प्रधानाचार्य
चित्रगुप्त इंटर कॉलेज
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आजादी के समय के स्कूल भवन बने हैं। ऐसे में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर कोई जागरूकता नहीं थी, लेकिन अब परिस्थितियां बदली हैं। पानी को लेकर हमें जागरूक होना पड़ेगा। अपनी मैनेजमेंट कमेटी में प्रस्ताव पेश कर इस पर चर्चा कराएंगे। कोशिश होगी इसे लगाया जाए।
डॉ. एचआर सिंह, प्राचार्य
¨हदू कॉलेज
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जब भी देखता बारिश का पानी बर्बाद हो रहा है तो मन दुख से भर जाता था। मैनेजमेंट से राय कर इसके लिए प्रस्ताव बनाया गया और भूगर्भ जल विभाग को भेजा गया। वहां से धन की स्वीकृति मिली। विभाग ने खुद ही हमारे यहां सौ मीटर के क्षेत्रफल में सिस्टम लगा दिया।
डॉ. हरवंश दीक्षित प्राचार्य
एमएच पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज
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