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गुदड़ी के लाल, गरीबी से बेहाल

मुरादाबाद। गरीबी, गुदड़ी, और इसी गुदड़ी में पले-पढ़े लाल। लाल भी कमाल के। कोई पान बेचने वाले की गोद मे

By Edited By: Published: Wed, 28 Jan 2015 02:23 AM (IST)Updated: Wed, 28 Jan 2015 02:23 AM (IST)
गुदड़ी के लाल, गरीबी से बेहाल

मुरादाबाद। गरीबी, गुदड़ी, और इसी गुदड़ी में पले-पढ़े लाल। लाल भी कमाल के। कोई पान बेचने वाले की गोद मे पला तो कोई कपड़े धोने वाले की बाहों में बड़ा हुआ। कोई सब्जी बेचने के हाथ के साथ हुनर का हमसफर बना तो कुछ तंगी के तांगे पर बैठक कर दुनिया की सैर पर निकले। पर, हार किसी ने नहीं मानी। ठानी कुछ करने की तो खेल के खलिहान में उपलब्धियों का ढेर लगा दिया। अब इस ढेर को ढहने से बचाने और उसे बढ़ाने की बारी है, लेकिन न तो उनके पास इसकेलिए धन है और न धनाभाव से लड़ने के लिए कोई साधन। सो, गुदड़ी के लाल गरीबी से बेहाल हैं और सरकार मूक दर्शक।

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बात हरथला कालोनी से शुरू करते हैं। यहां के निवासी मुक्केबाज आकाश कुमार के पिता सूरज पाल दिहाड़ी मजदूर हैं। जिस दिन काम मिलेगा उस दिन रोटी मिलेगी। पर, बेटा मुक्केबाजी में दमखम दिखा रहा है। दो माह पहले आकाश राज्य का बेस्ट मुक्केबाज चुना गया। इस महीने वह पुणे के सीनियर नेशनल में क्वार्टर फाइनल तक पहुंचा और नेशनल गेम्स में प्रवेश का टिकट भी हासिल कर लिया। पहले वह सब जूनियर राष्ट्रीय, जूनियर राष्ट्रीय में भी स्वर्ण जीत चुका है। पर, घर में आय का कोई और जरिया नहीं है। ऐसे में उसके कदम लड़खड़ा रहे हैं। बातचीत में वह बताता है, यदि सरकार नौकरी दे दे तो हम और भी बेहतर खेल का प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन नौकरी तो दूर कोई प्रोत्साहन तक नहीं दिया जाता है।

इस खेल में ही राष्ट्रीय स्तर तक अपनी प्रतिभा दिखा चुके रवि कुमार के पिता ब्रह्मा पेशे से धोबी हैं। कपड़ा धोने, प्रेस करने से जो मिलता है, उसी से घर का चूल्हा जलता है, लेकिन रवि अभी भी संघर्ष कर रहा है। रवि बताता है कि जैसे सरकार छात्रों को छात्रवृत्ति देती है उसी प्रकार खिलाड़ियों को भी मिले तो उत्तर प्रदेश से खेल प्रतिभाओं का पलायन नहीं होगा। इसी तरह यहां मुक्केबाजी में स्कूल राष्ट्रीय खेल चुकी परवीन की मां सब्जी की दुकान लगाती हैं तो वाहन चलाने वाले पिता की दो बेटिया दीपा व कविता प्रदेश की बेस्ट मुक्केबाज तक रह चुकी हैं। इन सब का सफर लगभग थम गया है। परिवार के पास आगे बढ़ाने के लिए पैसा नहीं है और इनके पैरों में गरीबी की बेड़ियां बंध गई हैं।

फुटबाल में मुरादाबाद मंडल की टीम में शामिल विशाल थापा के पिता श्याम बहादुर उद्योग केंद्र के पास पकौड़ी की दुकान लगाते हैं। बेटा फुटबाल के क्षेत्र में सीढि़यां चढ़ रहा है। पर, कब तक इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। राष्ट्रीय स्कूल में उत्तर प्रदेश की टीम से खेल चुके नितेश सैनी के पिता सब्जी बेचते हैं। गरीबी इनके भी कदम रोक रही है। अंडर 16 उत्तर प्रदेश की फुटबाल टीम में शामिल सुमित धवन के पिता प्राइवेट नौकरी में है। घर चलाना ही मुश्किल है तो बेटे को कैसे आगे बढ़ाएं। ये कुछ नाम तो एक बानगी हैं। दो दर्जन से अधिक चेहरे विभिन्न खेलों में सरकारी मदद न मिलने के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।

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इनसेट

जिस प्रकार सरकार विभिन्न खेलों के प्रशिक्षकों को मानदेय देने, भर्ती करने के निर्णय ले रही है। उसी प्रकार ऐसे खिलाड़ियों के लिए भी कदम उठाने चाहिए। उन्हें खेल प्रोत्साहन छात्रवृत्ति देने, प्रतिदिन खेल के हिसाब से डाइट भत्ता या प्रतिमाह खेल के लिए एक निश्चित रकम का भुगतान हो ताकि खेल प्रतिभाएं अपनी मंजिल तक पहुंच सकें।

संतोष क्षेत्री, अंशकालिक प्रशिक्षक मुक्केबाजी


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