रेस के घोड़ों पर करोड़ों का दांव
मुरादाबाद : घोड़ों की दौड़ पर आप ने भले ही कभी कोई दांव नहीं लगाया हो, लेकिन सरकार इनपर हर साल करोड़ों
मुरादाबाद : घोड़ों की दौड़ पर आप ने भले ही कभी कोई दांव नहीं लगाया हो, लेकिन सरकार इनपर हर साल करोड़ों रुपये का दांव लगाती है। यह और बात है कि यह धनराशि उनके पालन पोषण पर खर्च होती है। वह मात्र इसलिए कि उनकी दौड़ प्रतियोगिता प्रत्येक साल होती है। वरना, अब न तो घोड़ों से डकैतों को पकड़ा जाता है और न ही बीहड़ की खाक छाननी पड़ती है। फिर भी एक घोड़े पर एक दिन का खर्चा तीन सौ रुपये है। यानि प्रदेश पुलिस के साढ़े चार सौ घोड़ों का एक दिन का खर्चा एक लाख पैंतीस हजार बैठता है। इस हिसाब से साल का खर्चा 49 करोड़ 02 लाख 75 हजार रुपये बैठता है। अब इन घोड़ों का काम देखिए, मात्र घुड़सवारी प्रतियोगिताओं और शादी समारोहों में हिस्सा लेना।
पुराने समय में डकैत और बदमाश बीहड़ों में रहकर घोड़ों से चलते थे। इन्हें पकड़ने के लिए पुलिस में घोड़ों की खरीदफरोख्त की गई थी। समय बदलने के साथ साथ अपराध करने का तरीका बदला तो घोड़ों की जगह बदमाशों ने वाहन इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। पुलिस में भी वाहनों का इस्तेमाल शुरू हो गया। दंगा नियंत्रण के लिए कुछ समय तक तो इन घोड़ों का प्रयोग किया गया, लेकिन जब से वज्र वाहन और वाटर कैनन वैन आ गई, तब से इनका प्रयोग लगभग बंद हो गया। लिहाजा पुलिस लाइन में घोड़ों का इस्तेमाल अब शादी समारोहों में शोभा बढ़ाने, प्रशिक्षण के दौरान घुड़सवारी और प्रतियोगिता में भाग लेने तक सीमित रह गया है। इस समय प्रदेश में पुलिस के पास साढ़े चार सौ घोड़े हैं। एक दिन में एक घोड़े के लिए तीन सौ रुपए शासन से स्वीकृत हैं। इन घोड़ों के सवारों का भी बहुत काम नहीं रह गया है। पूरे दिन घुड़साल में रहकर घोड़ों की देखभाल करना और प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना ही रह गया है।
---------------------
प्रदेश के टॉप टेन घोड़े
राका- मुरादाबाद
अल्तमस- मुरादाबाद
विक्की- मुरादाबाद
हिटलर- बरेली
ज्वाला- आगरा
मेहताब- फैजाबाद
हीरा- मेरठ
विराट- मेरठ
सिकंदर- इलाहाबाद
ऊदल- कानपुर
राका ने जीते 14 स्वर्ण
मुरादाबाद के राका ने राज्य और ऑल इंडिया प्रतियोगिता में 14 स्वर्ण पदक जीते हैं, जबकि अल्तमस, विक्की, हिटलर और ऊदल ने भी प्रदेश पुलिस के लिए पदक हासिल किए हैं।
------------------------
घोड़ो का भोजन (प्रतिदिन के हिसाब से)
एक किलो चना, डेढ़ किलो जौ, एक किलो सात सौ ग्राम चोकर, तीन किलो नमक, साढ़े 18 किलो हरी घास, सप्ताह में तीन दिन 100-100 ग्राम सरसों का तेल। सप्ताह में एक बार एक किलो देशी घी। सप्ताह में एक बार एक किलो अलसी का तेल। पर, घालमेल से ये भी मुक्त नहीं है। सो, मिले मदों से न तो घी आ पाता है और न हीं अलसी का तेल। इसके लिए सवारों ने मुख्यालय को मांगपत्र भेजा है।