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राजगढ़ व कर्मा के टमाटर का विदेशों में जलवा

मीरजापुर : टमाटर उत्पादन में मीरजापुर में राजगढ़ व सोनभद्र का कर्मा क्षेत्र प्रदेश में अहम स्थान रखत

By Edited By: Published: Tue, 25 Oct 2016 12:26 AM (IST)Updated: Tue, 25 Oct 2016 12:26 AM (IST)
राजगढ़ व कर्मा के टमाटर का विदेशों में जलवा

मीरजापुर : टमाटर उत्पादन में मीरजापुर में राजगढ़ व सोनभद्र का कर्मा क्षेत्र प्रदेश में अहम स्थान रखता है। यहां का टमाटर प्रदेश की प्राय: सभी नामी-गिरामी सब्जी मंडियों के अलावा पाकिस्तान, नेपाल व बांग्लादेश में अपना जलवा बिखेरता है। इस इलाके में टमाटर की खेती करने वाले किसान भी रुपये से लाल हो गए हैं। दिनोंदिन इसकी खेती का रकबा बढ़ता जा रहा है। कैसे और कब टमाटर की खेती कर लाभकारी मूल्य लिया जाए, इस विषय पर राजगढ़ क्षेत्र के पड़रवा गांव के प्रगतिशील किसान अजीत कुमार ¨सह से बातचीत की गई।

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अजीत प्रगतिशील किसान के साथ अपने गांव के प्रधान भी है। वे हर साल आठ से दस बीघा टमाटर की खेती करते हैं। बतातें है कि टमाटर के लिए पहले खेत की तैयारी की जाती है। मई- जून में खेत का प्लाऊ किया जाता है। इसके बाद उसमें किसान गोबर व कम्पोस्ट खाद डालना शुरू कर देते हैं। इस खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए एक- दो बार खेत की जोताई कराई जाती है।कब डालें नर्सरी : टमाटर की नर्सरी पंद्रह से बीस जुलाई के बीच डाली जाती है। एक बीघा टमाटर की खेती करने के लिए पांच ग्राम बीज की जरूरत पड़ती है। इस दौरान बरसात का मौसम होने के कारण नर्सरी बचाने के लिए प्रबंध करना पड़ता है। नर्सरी के ऊपर किसान चारो किनारे लकड़ी खड़ा कर बरसाती या प्लास्टिक की पन्नी लगा देते हैं जिससे बरसात का पानी सीधे नर्सरी पर न पड़े। बरसात का सीधे पानी पड़ने पर नर्सरी गलकर खराब हो जाती है। इस साल तो काफी बरसात होने से टमाटर व मिर्च की खेती करने वाले किसान परेशान थे। ऐसे मौसम में किसानों को बीज की दो गुना मात्रा में नर्सरी डालनी पड़ी। यह नर्सरी बीस से पचीस दिन में तैयार हो जाती है।

ऐसे करें रोपाई : टमाटर की नर्सरी तैयार होने के बाद उसकी खेत में रोपाई शुरू होती है। टमाटर के खेत का चयन करते समय इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि वह ढालू भूमि हो ताकि बरसात का पूरा पानी निकल जाए। खेत में पानी लगने पर पौधे गल कर खत्म हो जाते हैं। टमाटर के एक से दूसरे पौधे व लाइन की दूरी तीन से चार फीट होती है। यह दूरी रखने से पौधों के बढ़ने फैलने व मिट्टी चढ़ाने में सुविधा होती है।

निकाई- गुड़ाई व देखभाल : टमाटर के पौधे के लिए खरपतवार काफी हानिकारक होते है। इसलिए खेतों की निकाई- गुड़़ाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है। पौध लगने के बाद पहली गुड़ाई होती है। गुड़ाई के समय पौंधों के जड़ के नीचे थोड़ी मिट्टी लगा दी जाती है जिससे उसके आसपास बारिश का पानी न लगे व उसका विकास उत्तरोत्तर होता रहे। टमाटर में फलत लगने तक कम से कम तीन बार गुड़ाई कराई जाती है। एक बार की गुड़ाई करने पर ढाई से तीन हजार रुपये प्रति बीघा खर्च आता है। इस दौरान मौसम के अनुसार पौंधों को बचाने व जल्दी स्वस्थ होने के लिए कम से कम तीन बार कीटनाशक का छिड़काव किया जाता है। दवाओं के छिड़काव पर चार हजार रुपये बीघा खर्च आता है। इस प्रकार एक बीघा टमाटर की खेती करने पर बीस से तीस हजार रुपये लागत खर्च आता है।

- नब्बे दिन में शुरू होती है फलत : टमाटर की फलत नब्बे से सौ दिन में शुरू हो जाती है। इस समय टमाटर में फूल लगने लगा है। इस साल बरसात होने से टमाटर की खेती पिछड़ गई है। शुरूआती दौर में तो कम उत्पादन होता है, लेकिन उसकी बहुत अच्छी कीमत मिलती है। उसका उत्पादन बढ़ने के साथ उसकी कीमत कम होती जाती है। एक बीघा में कम से कम नब्बे से सौ ¨क्वटल टमाटर का उत्पादन होता है। अगर टमाटर के लिए बढि़या मौसम मिल जाए तो यह उत्पादन बढ़कर सौ से 120 ¨क्वटल हो जाए। एक बीघा टमाटर की खेती में औसतन सत्तर से अस्सी हजार रुपये मिल जाता है। अगर लागत खर्च निकाल दिया जाए को किसान को चालीस से पचास हजार रुपये बीघा का लाभ होता है। ग्राम प्रधान के चाचा नागेंद्र कुमार ¨सह टमाटर की खेती करने के लिए पुरस्कृत हो चुके हैं।


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