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असहयोग आंदोलन के दौरान मीरजापुर आए थे गांधीजी

By Edited By: Published: Wed, 02 Oct 2013 01:10 AM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2013 01:10 AM (IST)
असहयोग आंदोलन के दौरान मीरजापुर आए थे गांधीजी

अरुण तिवारी

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मीरजापुर : आजादी की लड़ाई के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आगमन समय-समय पर मीरजापुर होता रहा। वर्ष 1921 में चलाए गए असहयोग आंदोलन में इस जनपद की भूमिका उत्साहवर्धक रही। प्रशासन भी सक्रिय हुआ। मीरजापुर के जिला काग्रेस कार्यालय में पुलिस घुसकर जांच पड़ताल की। पुलिस के हाथ स्वयंसेवकों का रजिस्टर लगा। उस रजिस्टर में राष्ट्रपिता ने खुद अपने हाथों से आजादी के दीवानों के नाम संदेश लिखा था।

उन्होंने मीरजापुर के स्वयंसेवकों का उत्साहवर्धन करते हुए कहा था कि यह धरती काफी उर्जावान है। वाराणसी से सटे होने की वजह से इस जिले की भूमिका आजादी की लड़ाई में काफी महत्वपूर्ण हो सकती है। जानकारों की मानें तो वाराणसी से इलाहाबाद जाते समय राष्ट्रपिता ने मीरजापुर के पुरानी अंजही मुहल्ले में बैठक भी की थी। उनके जाने के बाद डाक्टर उपेंद्रनाथ बनर्जी, बैरिस्टर युसुफ इमाम, अजीत नाथ भट्टाचार्य, हनुमान प्रसाद पाण्डेय, चंद्रिका प्रसाद विद्यार्थी, मौलवी हामीद आदि नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन आंदोलन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।

राष्ट्रपिता के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में जनपद के छात्रों की भूमिका भी स्मरणीय रही। महात्मा गांधी के आह्वान पर छात्र अपनी पढ़ाई छोड़कर आंदोलन में कूद पड़े। उन दिनों लंदन मिशन स्कूल तथा राजकीय विद्यालय बरियाघाट में अंग्रेजी की पढ़ाई होती थी। छात्रों में केशव प्रसाद उपाध्याय, मारकंडेय प्रसाद पाठक, पुरुषोत्तम लाल, चंद्रिका प्रसाद श्रीवास्तव, लालचंद मिश्र, वेणी माधव पाण्डेय ने जेल की यातनाएं भूगती। चौरीचौरा कांड के बाद राष्ट्रपिता द्वारा आंदोलन वापस लेने के बाद यहां भी आंदोलन समाप्त हो गया।

वर्ष 1930 के नमक सत्याग्रह आंदोलन में भी इस जनपद के प्रत्येक तहसील में संघर्ष समिति का गठन हुआ। जो आंदोलन को नेतृत्व प्रदान करने एवं जनसहयोग प्राप्त करने के लिए उत्तरदायी ठहराए गए। नगर इकाई का नेतृत्व जेएन विल्सन ने महात्मा गांधी के निर्देश पर किया। आठ मई 1930 को हजारों जनता के समक्ष कानून को तोड़ा गया और छोटी-छोटी पूड़ियों में नमक की नीलामी की गयी। स्थानीय मिशन स्कूल पर धरना दिया गया। विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के साथ ध्वजोतोलन आंदोलन में भी इसका अंग था।

चुनार के प्रो. विश्राम सिंह ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से आंदोलन का नेतृत्व किया। बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में 300 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसमें 56 सत्याग्रहियों को एक-एक मास की कड़ी कैद तथा 500 रुपये जुर्माना लगाया गया लेकिन सत्याग्रहियों ने हार नहीं मानी। राष्ट्रपिता के आह्वान पर 1942 के स्वाधीनता आंदोलन में जनपद में भयंकर आग भड़की थी। 600 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर नगर के नारघाट स्थित शहीद उद्यान में महात्मा गांधी की प्रतिमा भी स्थापित की गई है।

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खून का रिश्ता था शास्त्री जी का

पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री का मीरजापुर से खून का रिश्ता था। शास्त्री जी का नगर के गैबीघाट मुहल्ले में ननिहाल है। आज भी उनके ननिहाल का पुश्तैनी मकान है। उसमें शास्त्रीजी की तस्वीर टंगी हुई है। कहते हैं कि शास्त्रीजी को ननिहाल आने-जाने में गंगा पार करना पड़ता था। प्रधानमंत्री बनने पर उन्हीं की प्रेरणा पर गंगा में शास्त्री सेतु का निर्माण करवाया गया। ननिहाल में अब तीसरी पीढ़ी के लोग निवास कर रहे हैं। आज भी उनके पुत्र सुनील शास्त्री का आना जाना यहां लगा रहता है। सुनील शास्त्री मीरजापुर से लोकसभा का चुनाव लड़े थे तो उन्होंने गैबीघाट पर रहकर चुनाव का संचालन किया था। शास्त्रीजी की भी कई स्मृतियां यहां से जुड़ी हैं।

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