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मंदिर के बहाने संघ ने भाजपा का चुनावी रथ हांका

राम मंदिर के बहाने संघ ने भाजपा का चुनावी रथ हांक दिया है। दिल्ली की धर्मसभा में साढ़े तीन कार्यकर्ता शामिल होने का दावा किया जा रहा है। इससे माहौल खड़ा करने की कोशिश है।

By Ashu SinghEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 04:35 PM (IST)Updated: Fri, 16 Nov 2018 04:35 PM (IST)
मंदिर के बहाने संघ ने भाजपा का चुनावी रथ हांका
मंदिर के बहाने संघ ने भाजपा का चुनावी रथ हांका
मेरठ, संतोष शुक्ल। सियासत में टाइमिंग सबसे ज्यादा अहमियत रखती है, और राम मंदिर के बहाने संघ ने भाजपा का चुनावी रथ हांक दिया है। पश्चिमी उप्र के हार्डकोर सियासी जमीन पर इसकी पटकथा में नया अध्याय जोड़ा जा चुका है। समन्वय बैठक में संघ ने अपने सहयोगी संगठनों को पूरा होमवर्क थमा दिया है। सभी जनप्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र से पांच-पांच हजार की भीड़ के साथ दिल्ली भेजने का लक्ष्य दिया गया है।
सुलगते मुद्दे में छुपी संजीवनी
संघ भले ही कोर्ट के निर्णय को लेकर दिल्ली में नौ दिसंबर को रैली करेगा, किंतु इसके सियासी फायदे भी हैं। समन्वय बैठक के मैराथन मंथन पर नजर डालें तो भावनात्मक मुद्दों की नींव पर बड़ी सियासी इमारत बनाने की कवायद शुरू कर दी गई है। एक सधी हुई रणनीति के तहत कोर्ट पर दबाव बनाने की मुहिम से जनता को कनेक्ट करने का प्रयास होगा। पार्टी भी जानती है कि सुलगते मुद्दों की पतवार से चुनावी भंवर पार किया जा सकता है। अंदरूनी चर्चाओं पर यकीन करें तो तमाम जनप्रतिनिधियों का रिकार्ड कार्ड इतना खराब रहा है कि पार्टी उन पर एतबार नहीं कर पा रही है। पश्चिमी उप्र में विहिप, बजरंग दल एवं अन्य संगठनों की बढ़ती सक्रियता भी कुछ ऐसा ही इशारा कर रही है।

कारसेवा की याद करेंगे ताजा
भाजपा ने जहां अयोध्या में दीवाली मनाकर पुरानी शैली में मशाल हाथ में थाम ली है, वहीं इलाहाबाद को प्रयागराज और फैजाबाद को अयोध्या करने का सिलसिला भी पार्टी की सेहत को खाद पानी देगा। मेरठ प्रांत से साढ़े तीन लाख कार्यकर्ता दिल्ली पहुंचेंगे, जिसमें जय श्रीराम के नारों के बहाने 90 के दशक में हुई कारसेवा की यादों को ताजा करने का प्रयास है। मेरठ संघ का पावरहाउस है, जहां से उप्र व उत्तराखंड की भगवा सियासत पर नियंत्रण रखा जाता है। इसी वर्ष फरवरी में संघ ने राष्ट्रोदय के बहाने भाजपा को आक्सीजन का झोंका दिया, जब देशभर में अनुसूचित वर्ग भगवा खेमे के प्रति आक्रामक हो रहा था।
मेरठ अब सियासी राजधानी बना
राजनीतिक पंडितों की मानें तो 2014 लोकसभा चुनावों में पार्टी की जीत की हवा पश्चिमी यूपी से बनी। 2017 विस चुनावों में भी भाजपा को इस क्षेत्र में रिकार्ड सफलता मिली। फरवरी में राष्ट्रोदय व अगस्त में प्रदेश कार्यसमिति के जरिए प्रदेश में संदेश देने का प्रयास किया गया। कार्यसमिति के बहाने पहली प्रदेश का कोई मुख्यमंत्री रातभर मेरठ में रुका। पार्टी की रणनीति है कि पश्चिम में भगवा सियासत का केंद्र मेरठ को बनाकर तीन कमिश्नरियों को साधा जा सकता है। इसी प्रकार बदलती परिस्थितियों को देखें तो ध्रुवीकरण की नोक पर चलने वाला पश्चिमी उप्र भाजपा के लिए एक बार फिर संजीवनी बनता नजर आ रहा है।

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