सपने अपने : एनसीआरटीसी की गैरजरूरी गोपनीयता, अब लौट आओ बाबू Meerut News
विकास से अछूता रहा मेरठ तो रीजनल रैपिड रेल की हर दिन की गतिविधि का बेसब्री से इंतजार करता है। हालांकि अधिकारी सुरक्षा वाले विभाग से भी ज्यादा गोपनीय हैं।
मेरठ, [प्रदीप द्विवेदी]। एनसीआरटीसी यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम पर देश की पहली रीजनल रैपिड रेल संचालित करने का जिम्मा है। यह रेल, एनसीआर के आसपास के शहरों गाजियाबाद, मेरठ, पानीपत, अलवर आदि को कुछ मिनटों की दूरी से दिल्ली से जोड़ देगी। विकास का परिदृश्य बदल देने वाली इस महत्वाकांक्षी परियोजना के बारे में पूरा एनसीआर ही नहीं, दूर-दराज तक के लोग हर नया अपडेट जानना चाहते हैं। विकास से अछूता रहा मेरठ तो इसकी हर दिन की गतिविधि का बेसब्री से इंतजार करता है। हालांकि अधिकारी सुरक्षा वाले विभाग से भी ज्यादा गोपनीय हैं। मीडिया को सकारात्मक जानकारी देने से दूर भागते हैं। यह शायद इकलौती ऐसी परियोजना है जिसके अधिकारी खुद जानकारी देने के बजाय भारी खर्च कर पीआर एजेंसी के माध्यम से बात रखते हैं पर उन्हें भी नहीं पता रहता कि कहां क्या चल रहा। खैर, गैरजरूरी गोपनीयता भी ठीक, लेकिन अच्छा करें तो।
अब लौट आओ बाबू
दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे के प्लांट के ठेकेदार ने फोन मिलाया बिहार। पत्नी ने फोन पकड़ाया तो श्रमिक से ठेकेदार बोले, बाबू लौट आओ। बहुत दिन हो गए, अब तो एक्सप्रेस-वे शुरू होने वाला है। इसकी शुरुआत तुम सबने की, उसे क्या अधूरा छोड़ दोगे। अब किसे ढूंढेंगे, तुम्हें भी तो परिवार चलाना है। ऐसे ही फोन लगभग सभी को किया गया। दरअसल, मेरठ से डासना तक के हिस्से के निर्माण में 1400 श्रमिक लगाए गए थे। करीब 70 फीसद काम भी हो गया है। जब लॉकडाउन की घोषणा हुई थी तब जिन्हें जाने का साधन मिला, वे चले गए। प्लांट के क्वार्टर में 400 श्रमिक पूरी एहतियात के साथ इस पूरे लॉकडाउन तक रुके रहे। ठेकेदार अब इन्हें रोकने को ढांढस देते हैं। इनसे ही कहा जा रहा है कि अपने जानने वालों को फोन करके उन्हें बुला लो। श्रमिक नहीं आए तो प्रोजेक्ट ज्यादा पिछड़ जाएगा।
बादशाह प्रशासन गिड़गिड़ाते मैनेजर
इन दिनों जिला प्रशासन का रुतबा इतना ज्यादा है कि वरिष्ठ अधिकारी बादशाह की भूमिका में हैं। कोरोना संक्रमण की चेन व इलाज की व्यवस्था तो खैर अपनी जगह है मगर आजकल साहबों को शायद बड़े-बड़े प्रोजेक्ट के मैनेजरों की गिड़गिड़ाहट सुनने में ज्यादा आनंद आ रहा है। इतनी मनुहार तो इन मैनेजरों ने अपने नए रिश्तेदार से भी नाराजगी पर न की होगी। बड़े-बड़े उद्यमी और उद्योग संगठन आजकल एड़ियां घिस रहे हैं जबकि रहम किस्तों में दी जा रही है। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के लिए एक उद्योग चलना था, जिसके लिए ग्रुप जनरल मैनेजर तक को अपील करनी पड़ी। एक्सप्रेस-वे, एनएचएआइ के साथ भी ऐसा रहा। वे व्यापारी संगठन जो हुंकार भरते थे, वे धरने पर बैठे। आइटी पार्क के लिए लखनऊ से डीजीएम ने फोन किया फिर भी बात नहीं बनी। सरकारी सिस्टम से जूझने का मैनेजरों का यह नए तरह का अनुभव है।
प्रबंधन सोनू सूद का
सोनू सूद अभिनेता हैं। उन्हें सरकारी व्यवस्था का नजदीक से परिचय नहीं होगा। आपातकाल में कैसे प्रबंध किया जाता है इसका भी उनका कोई प्रशिक्षण नहीं होगा पर मेरठ की अव्यवस्था पर कई शखिसयतों ने जिला प्रशासन को उनसे सीख लेने की जरूरत बतलाई है। जिस तरह से अपने परिचितों व स्टाफ की मदद से सोनू सूद ने सब काम आसान कर दिया वह काबिले तारीफ है। यहां की व्ववस्था ऐसी कि सामुदायिक रसोई में सड़े आलू मिले। मंडी, बाजार का हाल सबने देखा ही है। मेडिकल कॉलेज की फजीहत में तब सुधार हुआ जब मुख्यमंत्री ने सीधा एक्शन लिया। वरना बड़े-बड़े एक्सपर्ट धराशायी थे। बढ़ते केस पर लापरवाही चलती रही मगर सुधार वाले सख्त कदम तब उठाए गए जब समय बीत गया ..वह भी तब, जब लोग बाहर निकलने को व्याकुल हैं, व्यापारी धनाभाव से तरस रहे हैं और टकराने की धमकी दे रहे हैं।