गंगा में बसेगी कछुओं की नई बस्ती
हस्तिनापुर (मेरठ): नदियों की शुद्धता का संकेतक कहलाने वाले कछुए अब गंगा में नई बस्ती बसाएंगे। वन विभ
हस्तिनापुर (मेरठ): नदियों की शुद्धता का संकेतक कहलाने वाले कछुए अब गंगा में नई बस्ती बसाएंगे। वन विभाग एवं डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने संकटग्रस्त प्रजातियों के 501 कछुओं को संरक्षित किया है। 12 सौ से ज्यादा कछुओं को गंगा नदी में छोड़ा जा चुका है। वैज्ञानिकों की मानें तो गंगा में कछुओं की तादात बढ़ाकर न सिर्फ पानी की शुद्धता बेहतर की जाएगी, बल्कि नदी की इकोलोजी को नई ताकत भी मिलेगी।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अधिकारी संजीव यादव ने बताया कि 2013 अब तक 1709 कछुओं को संरक्षित किया जा चुका है। गंगा के रेतीले क्षेत्र में कछुओं के घोंसले खोजे जाते हैं। यहां से अंडों को लेकर गंगा किनारे बनी हैचरी में निश्चित तापमान व स्थान पर सुरक्षित किया जाता है। बाद में इन शावकों को वानिकी प्रशिक्षण केंद्र के तालाब में रखा जाता है। जब ये कछुए तेज पानी के बहाव में तैरने लायक हो जाते है और नदी में बाढ़ का समय निकल जाता है तब उन्हें गंगा नदी में छोड़ दिया जाता है। इस बार पंगशुरा जीनस की संकटग्रस्त उप प्रजाति पंगशुरा टेंटोरिया फलेविएंटर भी मिली है।
इनका कहना है
कछुआ संरक्षण कार्यक्रम डब्ल्यूडब्ल्यूएफ व वन विभाग के संयुक्त प्रयास से चलाया जा रहा है। कछुओं के संरक्षण के पश्चात नई संकटग्रस्त प्रजातियों का भी पता चला है। तालाब में संरक्षित किए गए कछुओं के शावकों को शीघ्र ही गंगा में छोड़ा जाएगा।
-अदिति शर्मा, डीएफओ मेरठ।