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लंबी लाइनें बता रही हैं कुत्तों का खौफ

मेरठ : जिला अस्पताल के एंटी रेबीज सेक्शन में सुबह से भारी भीड़ है। दोपहर दो बजे तक वैक्सीन लगवाने वा

By Edited By: Published: Wed, 28 Sep 2016 01:28 AM (IST)Updated: Wed, 28 Sep 2016 01:28 AM (IST)
लंबी लाइनें बता रही हैं कुत्तों का खौफ

मेरठ : जिला अस्पताल के एंटी रेबीज सेक्शन में सुबह से भारी भीड़ है। दोपहर दो बजे तक वैक्सीन लगवाने वालों की संख्या दो सौ पार कर गई। ये हालात तब हैं, जब जिले की सभी 12 सीएचसी पर नियमित टीकाकरण का दावा है। एक अनुमान के मुताबिक सत्तर फीसदी मरीज प्राइवेट क्लीनिकों में वैक्सीन लगवाते हैं। इन आंकड़ों का मोटा-मोटा विश्लेषण भी साफ करता है कि अवारा आंतक कितना भयावह है।

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सरधना सीएचसी का एक दृश्य खौफनाक है। कुत्तों और बंदरों के शिकार कई मरीजों के घावों में संक्रमण हो गया है। उन्हें पता नहीं था, ऐसे में घावों पर डिटॉल और पट्टी लगा दी गई, जिससे मरीज की जिंदगी खतरे में फंस गई। स्वास्थ्य केंद्र पर वैक्सीन के लिए पांच मरीजों का इंतजार हो रहा है, बच्चे दर्द से चीख रहे हैं। वैक्सीन लगवाने के बाद भी घावों से सेप्टिक का अंदेशा होता है। घाव को खुला रखना चाहिए। रोजाना दर्जनों की संख्या में मरीज सरधना और सरूरपुर सीएचसी पर रेबीज के इंजेक्शन लगवाने पहुंचते हैं। दोनों सीएचसी पर वैक्सीन की भरपूर उपलब्धता है, किंतु घंटों का इंतजार पीड़ादायी है।

जिला अस्पताल में गत वर्ष तक रोजाना करीब डेढ़ सौ मरीजों को वैक्सीन लगाई जाती थी, किंतु अब यह आंकड़ा दो सौ पार कर चुका है। अस्पताल के एंटी रेबीज सेक्शन में दो बजे तक वैक्सीन लगाई जाती है, जबकि इसके बाद इमरजेंसी वार्ड में 24 घंटे वैक्सीनेशन का नियम है। हालांकि चिकित्सकों का दावा है कि रेबीज के प्रति जागरूकता की वजह से भी वैक्सीन की खपत बढ़ी है। सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में वैक्सीन को दोनों बाहों में मांस के ऊपर लगाया जाता है, वहीं, प्राइवेट क्लीनिकों में मांसपेशियों में लगाए जाने वाले इंजेक्शनों का उपयोग किया जा रहा है।

70 फीसद लोग करते हैं निजी अस्पतालों का रूख

जिला अस्पताल समेत अन्य स्वास्थ्य केंद्रों पर वैक्सीन का रखरखाव एवं उसका डोज कई बार मरीजों को भ्रमित कर देती है। एक सर्वे के मुताबिक ज्यादातर मरीज प्राइवेट क्लीनिकों में लगने वाली वैक्सीन को तवज्जो देते हैं। इसमें पांच इंजेक्शनों की खुराक पर दो हजार से ज्यादा रुपए खर्च करने पड़ते हैं। एंटी रेबीज इंजेक्शनों को दो से छह डिग्री तापमान पर रखना चाहिए। कई बार बिजली चली जाने एवं रखरखाव में चूक से इंजेक्शन खराब हो सकते हैं।

पागल कुत्ते की पहचान

-पागल कुत्ता देखने में बदहवास लगता है। उसके दोनों कान गिरे हुए होते हैं और आक्रमण की मुद्रा में अचानक खड़े हो जाते हैं।

-पागल कुत्ता लेटता नहीं हैं। इसका थूथन सूखा हुआ होता है। खाना पीना छोड़ देता है।

-पानी से डरता है। भौंकने की आवाज अलग हो जाती है। लार में रेबीज के वायरस बड़ी संख्या में बनने से उसमें काटने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।

-जब कुत्तों का झुंड अचानक किसी कुत्ते से डरने लगे तो समझिए उसमें रेबीज का संक्रमण शुरू हो चुका है। रेबीज संक्रमित कुत्ता भागता हुआ नजर आता है।

बचाव के लिए क्या करें

-अगर आक्रमण कर दे तो बिना डरें इसका मुंह पकड़ने का प्रयास करें। कुत्ते में समझ खत्म हो जाती है, ऐसे में काटने के बाद छोड़ना भूल जाता है और पूरा हाथ तक उखाड़ सकता है।

-पहली वैक्सीन 24 घंटे के अंदर, दूसरा वैक्सीन तीन दिन के अंदर तथा तीसरा वैक्सीन सात दिन के अंदर रोगी को लगने चाहिए।

-अगर काटने वाले जानवर की दस दिन में मौत हो जाती है तो चौथा 21 दिन व पांचवा वैक्सीन 28 दिन के बीच लगाना आवश्यक है।

- संक्रमित मरीज या जानवर का जूठा खाने से भी संक्रमण हो सकता है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एक वायल में पांच डोज बनते है, जिसे पांच मरीजों को लगाया जाता है।

क्या कहते हैं अधिकारी

एंटी रेबीज वैक्सीन का भरपूर स्टाक है। सभी 12 सीएचसी पर सप्ताह में दो दिन लगाई जाती है, जबकि इमरजेंसी में 24 घंटे लगाई जा सकती है। वैक्सीन की सुरक्षा एवं वैक्सीनेशन के लिए सभी केंद्रों को सख्त निर्देश दिये गए हैं।

-डा. वीपी सिंह, सीएमओ।


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