Move to Jagran APP

टीबी के खौफ में पढ़ाई छोड़ रहे डाक्टर

संतोष शुक्ल, मेरठ मेडिकल कालेज जब अपने डाक्टरों को नहीं बचा पा रहा, तो मरीजों को कैसे बचा पाएगा? म

By Edited By: Published: Tue, 28 Jun 2016 02:10 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jun 2016 02:10 AM (IST)
टीबी के खौफ में पढ़ाई छोड़ रहे डाक्टर

संतोष शुक्ल, मेरठ

loksabha election banner

मेडिकल कालेज जब अपने डाक्टरों को नहीं बचा पा रहा, तो मरीजों को कैसे बचा पाएगा? मेडिसिन के करीब आधा दर्जन डाक्टरों को टीबी का संक्रमण लग गया। एक रेंजीडेंट डाक्टर को एमडीआर टीबी हो गई, जिसके चलते उसे मेडिकल कालेज छोड़ना पड़ा। मेडिसिन विभाग के डाक्टरों ने प्राचार्य से लेकर महानिदेशक, चिकित्सा शिक्षा को भी पत्र लिखा। आइसीसीयू व टीबी वार्ड में वेंटीलेशन एवं एसी न होने से खतरनाक बैक्टीरिया ने डाक्टरों को अपनी गिरफ्त में ले लिया।

टीबी का बैक्टीरिया नए सिरे से खतरा बन चुका है। मल्टी ड्रग रजिस्टेंट के मरीजों की संख्या घातक रूप से बढ़ी है। टीबी के मरीजों पर प्रथम पंक्ति की तीनों दवाएं फेल पाई गई। मेडिकल कालेज में टीबी के गंभीर मरीजों को आइसीसीयू में भर्ती कराया जाता है, जहां पर एसी न होने से संक्रमण का खतरा कई गुना ज्यादा है। इस दौरान जेआर-1 से लेकर जेआर-3 एवं कई अन्य चिकित्सक भी टीबी के बैक्टीरिया से संक्रमित हो गए। डाक्टरों एवं मरीजों में मास्क न लगाने की प्रवृत्ति से खतरा और बढ़ गया। डाक्टरों का कहना है कि टीबी वार्ड को बैक्टीरिया फ्री रूम होना चाहिए।

..किसी को भी लग सकता है डायरेक्ट एमडीआर

मरीज एक बार खांसने पर 50 हजार बैक्टीरिया हवा में छोड़ता है, जिसके संपर्क में आने वाले को डायरेक्ट एमडीआर टीबी होगी। डाट केन्द्रों से बीच में दवा छोड़ने वाले, अनियमित डोज लेने वाले व घने इलाकों में टीबी का खतरा ज्यादा होता है। हर व्यक्ति जीवन में कम से कम 15 बार टीबी के बैक्टीरिया से संक्रमित होता है, किंतु उच्च प्रतिरोधक क्षमता की वजह से वह बीमारी से बच जाता है।

-------बाक्स----------

-टीबी के लिए मेरठ यूपी के सबसे हाई रिस्क जोन में शामिल है।

-घने इलाकों, प्रदूषण, शुगर, कैंसर एवं किडनी की बीमारी बढ़ने से बढ़ गई टीबी।

-जिले में 825 डॉट केन्द्र। बीच में इलाज छोड़ने वाले मरीज दूसरों में फैलाते हैं बीमारी।

-शहर के तमाम प्राइवेट डाक्टरों को भी टीबी की बीमारी।

इनका कहना है..

मेडिकल कालेज के कई चिकित्सकों को टीबी हुई। मेडिसिन विभाग के छात्रों की संख्या ज्यादा रही। वार्डो में वेंटीलेशन बेहतर करने के साथ ही मास्क भी मंगवाए गए हैं।

डा. केके गुप्ता, प्राचार्य, मेडिकल कालेज

डाक्टर सर्वाधिक रिस्क में होते हैं। क्लीनिक में एयर फ्रेशनर, एक्जास्ट, वेंटीलेशन एवं मास्क का भरपूर प्रयोग करना चाहिए। खतरा तो फिर भी है।

डा. वीरोत्तम तोमर, सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.