ये पानी, ये कूड़ा, ये सीवर..बहुत कठिन है स्मार्ट सिटी की डगर
मेरठ : मेरठ शहर का स्मार्ट सिटी में चयन। एक मौका और मिला है, लेकिन स्मार्ट सिटी के जिन मानकों में मे
मेरठ : मेरठ शहर का स्मार्ट सिटी में चयन। एक मौका और मिला है, लेकिन स्मार्ट सिटी के जिन मानकों में मेरठ निगम फेल हुआ था वे आज भी जस के तस हैं। उनमें सुधार तो दूर सुधार की कोशिश भी नहीं दिखी। नगर निगम अफसरों को एक बार फिर से स्मार्ट सिटी की प्रतिस्पर्धा में शामिल होने की जानकारी तो है, लेकिन वे किसी कार्ययोजना पर काम करने के बजाय शासन से आदेश का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में मेरठ में स्मार्ट सिटी का सपना कैसे परवान चढ़ेगा।
जैसे तब थे, वैसे अब हैं
स्मार्ट सिटी के लिए मेरठ शहर ने 85 अंकों का दावा किया था, लेकिन समिति के परीक्षण में शहर को केवल 67.5 अंक ही मिल सके थे। मेरठ में जेएनएनयूआरएम मिशन के तहत चल रही गंगाजल पेयजल योजना, सीवरेज योजना व कूड़ा निस्तारण तीनों ही अधूरी थी। लिहाजा दस में से पांच अंक मिले। अभी भी कोई खास परिवर्तन नहीं आ सका है। कूड़ा निस्तारण और घर घर से कूड़ा उठना शुरू नहीं हुआ है। गंगाजल भी कुछ क्षेत्रों में शुरू करने का दावा किया जा रहा है, लेकिन योजना अभी भी अधूरी है। सीवरेज योजना के भी तमाम स्थानों पर काम अभी चल रहे हैं। केंद्र सरकार से मिलने वाला पैसा भी जल निगम को अभी तक नहीं मिला है।
शौचालयों के लिए प्रदेश नहीं दे रहा पैसा
घर घर में शौचालयों की प्रगति भी प्रदेश सरकार से धनराशि के इंतजार में अटकी है। निगम की आय बढा़ने के प्रयास भी सुस्त हैं। हाउस टैक्स की वसूली में सुधार का दावा किया जा रहा है लेकिन निगम की बजट में हिस्सेदारी में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं आ सका है। सबसे खराब स्थिति जलकल विभाग के भ्रष्टाचार से बनी थी। पेयजल लाइनों के रखरखाव व जलापूर्ति में होने वाले व्यय तथा उससे होने वाली आय में जमीन आसमान का अंतर था। जिसके चलते निगम को दस में से जीरो मिला।
इनमें करना होगा सुधार
- जलापूर्ति व लाइनों के रखरखाव पर आय से कई गुना खर्च।
- घर-घर में शौचालयों की धीमी प्रगति।
- निगम की अपने बजट में नाममात्र की हिस्सेदारी।
- नगर निगम की कुल आय में आंतरिक स्त्रोतों से नगण्य योगदान।
- जेएनएनयूआरएम मिशन से शहर के हालात में सुधार न होना।
- जेएनएनयूआरएम के तहत मार्च 2012 तक स्वीकृत योजनाओं की धीमी प्रगति।
एक महीने का वक्त, महापौर ने बुलाई बैठक
स्मार्ट सिटी में दावेदारी का मेरठ को फिर से मौका मिला है। महापौर ने योजना तैयार करने के लिए शुक्रवार को निगम अफसरों की बैठक बुलाई है। इस नए बदलाव से निगम अफसरों में भी हलचल मच गई है। केंद्र सरकार के आदेश पर कार्रवाई करते हुए नगर विकास सचिव ने अन्य 11 शहरों के साथ साथ मेरठ और रायबरेली से भी 30 जून तक प्रस्ताव मांगे हैं। नगर निगम के पास खुद को साबित करने के लिए एक महीने का समय है। इस महीने में ही निगम प्रशासन को शहर में उन तमाम व्यवस्थाओं में आमूल चूल बदलाव लाने होंगे। इस बार निगम चूका तो फिर शहर को स्मार्ट बनाने का मौका नहीं मिलेगा और शहर की जनता निगम प्रशासन तथा निगम बोर्ड को कभी माफ नहीं करेगी।
इन्होंने कहा..
स्मार्ट सिटी के जिन मानदंडों में शहर को कम अंक मिले थे उनमें अब काफी सुधार हुआ है। पिछली बार पूरे तथ्य पेश नहीं किए जा सके थे। जिस कारण मेरठ के अंक कम रह गए थे। इस बार पूरी तैयारी के साथ दावा किया जाएगा।
-कुल भूषण वाष्र्णेय, मुख्य अभियंता
केंद्र सरकार ने हमेशा राज्य के विकास में बढ़चढ़कर सहयोग दिया, किंतु राज्य की मंशा संदेहास्पद है। इसी वजह से मेरठ की दावेदारी में अड़ंगा लगा। संदेह है कि पिछली बार तत्कालीन नगर आयुक्त ने राज्य सरकार के दबाव में कमजोर रिपोर्ट भेजा। 20 जून तक कूड़ा निस्तारण पर निर्णय होगा, जिसके अंक मेरठ की दावेदारी मजबूत होगी। केंद्र सरकार से तत्काल पैरवी में जुटूंगा।
-राजेंद्र अग्रवाल, सांसद
प्रदेश का सर्वाधिक राजस्व, वेस्ट यूपी और एनसीआर का सबसे बड़ा शहर, करीब 20 लाख की जनसंख्या और उद्योगों से भरा पूरा परिवेश स्मार्ट सिटी बनाने के लिए काफी है। हमारा पैरवी एवं प्रयास में चूक हुई तो मेरठ को बड़ा धक्का लगेगा।
-लोकेश वत्स, खेल उद्यमी
केंद्र ने एक बार फिर स्मार्ट सिटी का प्रस्ताव मांगा है, पर सवाल है कि पिछले प्रस्ताव में क्या कमी रह गई? शहर की बार-बार परीक्षा ली जा रही है। विकास करना हो तो केंद्र खुद ही शहरों को मेरिट के आधार पर तय करे। आवश्यकता राजनीतिक इच्छाशक्ति की है।
-डा. तनुराज सिरोही, अध्यक्ष, आइएमए
मुझे अपने शहर से बहुत लगाव है। मैंने मेरठ के स्मार्ट सिटी बनने की योजना के बारे में कई बार सुना, किंतु बात आगे नहीं बढ़ पाई। स्मार्ट सिटी की हर पहल में मैं शामिल हूं।
-मनु अत्री, अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी
राजनीतिक इच्छाशक्ति की चूक से स्मार्ट सिटी के लिए तरसना पड़ा। भाजपा एवं सपा ने मेरठ को फुटबाल के रूप में इस्तेमाल किया। 2015 में ही स्मार्ट सिटी बनना था। जम्मू-कश्मीर के दोनों शहरों को स्मार्ट सिटी में ले लिया तो यूपी के मेरठ व रायबरेली को क्यों नहीं चुना। मेयर मजबूती से अपना पक्ष रखें। नहीं तो जनता भाजपा को माफ नहीं करेगी।
-नवीन गुप्ता, अध्यक्ष, संयुक्त व्यापार मंडल
शिक्षा से लेकर स्पोर्ट्स और अन्य सभी गतिविधियों में मेरठ प्रदेश के कई शहरों से आगे हैं। जिम्मेदार लोगों को हर संभव कोशिश करनी चाहिए कि मेरठ स्मार्ट सिटी बने।
-प्रो. एनके तनेजा, कुलपति, चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय।