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होर्डिग का जंगल है, किसकी जान पर बन आए कुछ पता नहीं

जागरण संवाददाता,मेरठ : पूरा शहर पांच हजार से ज्यादा होर्डिग से पटा है। होर्डिग का यह बिजनेस करोड़ों

By Edited By: Published: Tue, 24 May 2016 02:01 AM (IST)Updated: Tue, 24 May 2016 02:01 AM (IST)
होर्डिग का जंगल है, किसकी जान पर बन आए कुछ पता नहीं

जागरण संवाददाता,मेरठ : पूरा शहर पांच हजार से ज्यादा होर्डिग से पटा है। होर्डिग का यह बिजनेस करोड़ों का है। राजस्व के नाम पर निगम का बस शगुन भर होता है,लेकिन लोगों की जान की कीमत पर होर्डिग और यूनिपोल का जंगल खड़ा कर दिया गया है। शहर में मात्र 470 होर्डिग वैध हैं, लेकिन गिनने पर आ जाइए तो शहर में पांच हजार से ज्यादा छोटे बड़े होर्डिग लगे हैं। इनसे विज्ञापन शुल्क के नाम पर ठेकेदार बीस करोड़ से भी ज्यादा राशि वसूल रहे हैं, जबकि निगम के खजाने में मामूली राशि ही पहुंच पा रही है। वित्तीय वर्ष 2015-16 में नगर निगम ने विज्ञापन शुल्क के रूप में 1.82 करोड़ रुपये जुटाए। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि होर्डिग के खेल में किस कदर भ्रष्टाचार है। हालात यह हैं कि इक्का-दुक्का होर्डिग की अनुमति के बावजूद सभी चौराहों पर 20 से 50 तक होर्डिग लगाए गए हैं।

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होर्डिग माफिया की उंगलियों पर नाच रहा नगर निगम

पिछले कुछ वर्षो में यूनिपोल और होर्डिग का धंधा चोखा हो चला है। आज इसका सालाना व्यापार लगभग 100 करोड़ के आसपास पहुंच चुका है। चूंकि अवैध कारोबार की यह बेल 'रस' देने वाली है, लिहाजा कार्यदायी संस्थाओं के अफसरान भी आंख बंद किए बैठे हैं। कार्रवाई के नाम पर अभी तक कुछ नहीं किया जा सका है। डिवाइडर को काटकर मौत के खंभे खड़े कर रहे हैं।

प्रशासन भी बना धृतराष्ट्र

अवैध होर्डिग-यूनिपोल जरा सी हवा की रफ्तार बढ़ने पर गिर जाते हैं। दर्जनों लोग चोटिल होते हैं। कई लोगों की जान जा चुकी है। होर्डिग्स ने यातायात को भी प्रभावित कर दिया है। प्रशासनिक अधिकारी कहते हैं, उन्होंने प्रयास तो किए, लेकिन चूंकि नगर निगम एक स्वायत्त संस्था है, लिहाजा क्रियान्वयन उन्हें ही करना है। लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व जब अवैध होर्डिंग का हो-हल्ला मचा तो डीएम ने तत्कालीन नगर आयुक्त अब्दुल समद को पत्र लिखकर स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। लेकिन शासन से सीधे संपर्क का आलम रहा कि प्रशासन की चिट्ठी को वे शासन की शह पर फाइलों में ही दबा बैठे। होर्डिग गिरने के मामले में जो घायल होते हैं, या जिनकी मौत होती है उन प्रकरणों में कोई कठोर कार्रवाई नहीं होती। सामान्य धाराओं में मुकदमा होता है। मामला टालने की प्रवृति पुलिस की भी होती है। लापरवाही बताकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। इस बारे में डीएम ने कहा कि पीड़ित अपनी शिकायत दे तो कठोर कार्रवाई से कोई बच नहीं सकता।

ये है शहर की तस्वीर

शहर में लगे होर्डिग लगभग 5000

निगम से अनुमति मात्र 470

पंजीकृत ठेकेदार तीन (सांई एडवरटाइजिंग, नंद ईंक व डीसी काम)

किसे कितनी स्वीकृति

सांई एडवरटाइजिंग (नरेंद्र चौधरी) 200

डीसी काम (दीप्ति चौधरी पत्नी ज्ञानेंद्र चौधरी) 125

नंद ईंक (परीमल चंद्रा हीरा) 110

निजी 35

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बीओटी अनुबंध

छह मार्ग पर 26 यूनिपोल

17 चौराहों पर 17 यूनिपोल

होर्डिग्स और हादसे

-26फरवरी 2015 : आंधी में दर्जनभर स्थानों पर विशाल यूनिपोल और होर्डिग गिरे। जिनमें दबकर आधा दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए।

-10 मई 2014 : पीवीएस रोड पर तेज हवा से महिला प्रीति के ऊपर यूनिपोल गिरा। महिला अपाहिज हो गई।

-22 दिसंबर 2014 : हापुड़ रोड पर धीरखेड़ा के बीपीआर कोल्ड स्टोरेज के सामने अवैध होर्डिग के नीचे कार दबने से कृभको के एरिया मैनेजर और उनकी सास की मौत हो गई।

-27 मई 2013 : आंधी के चलते हापुड़ रोड चुंगी पर होर्डिग गिरने से युवक मुजबिल की मौत हो गई थी।

इन्होंने कहा..

डीएम पंकज यादव ने कहा कि जिस तरह से मेरठ में बेतरतीब ढंग से होर्डिग खड़े किए गए हैं, वह गैरकानूनी और खतरनाक हैं। इसके लिए फिर से नगर निगम को अवैध होर्डिग्स को हटाने को और शहर में नियमानुसार होर्डिग-यूनिपोल लगाए जाने को कहा जाएगा।


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