हर ली हरियाली, निकाल लिया कलक्ट्रेट का 'कलेजा'
मेरठ : कलक्ट्रेट क्षेत्र अब उजड़ा हुआ लगता है। यहां से गुजरते वक्त हरे-भरे पेड़ दिखाई नहीं दे रहे। सौं
मेरठ : कलक्ट्रेट क्षेत्र अब उजड़ा हुआ लगता है। यहां से गुजरते वक्त हरे-भरे पेड़ दिखाई नहीं दे रहे। सौंदर्यीकरण के बहाने हाल में ही सैकड़ों पेड़ों पर आरियां और कटारियां चलीं। हरियाली हर ली गई और कलक्ट्रेट का कलेजा निकाल लिया गया है। इतने पर भी पर्यावरण संरक्षण के लिए सेमिनारों में दर्द बयां करने वालों को पता नहीं है। जबकि वैज्ञानिकों का दावा है कि इन पेड़ों के कटान से जो क्षति हुई है, उसकी भरपाई में तीस वर्ष से ज्यादा लगेंगे।
बड़ी आसानी से दे दी
कटान की इजाजत
हरियाली से हारते जिले में इस बार बहाना जाम लगने का था। प्राधिकरण ने सड़क चौड़ीकरण के नाम पर सैकड़ों पेड़ काट डाले, लेकिन शहरवासी इसे सिरे से खारिज कर रहे हैं। उनका दावा है कि स्टेडियम, कमिश्नरी चौक एवं डीएम आवास के सामने जाम की कोई इतनी बड़ी समस्या नहीं थी। फिर इतनी बड़ी संख्या में पुराने पेड़ों का काटना हर सूरत में बेजा है। देखें तो एयरपोर्ट जैसी महत्वाकांक्षी योजना के लिए पेड़ों के कटान को हरी झंडी देने में वन विभाग ने नाको चने चबवा दिए थे, फिर कलक्ट्रेट क्षेत्र में सैकड़ों पेड़ों के कटान की इतनी आसानी से अनुमति कैसे दे दी गई? एमडीए ने महज 3.8 लाख रुपए की धनराशि जमाकर करीब पांच सौ पेड़ों को कटवा दिया।
बड़े काम के थे काटे गए ये शजर
जिन पेड़ों को कलक्ट्रेट क्षेत्र में काटा गया है, उसमें पीपल, गूलर, नीम, शीशम समेत अन्य महत्व की कई प्रजातियां हैं। इसमें से दर्जनों पेड़ पचास वर्ष से भी पुराने थे। इन पेड़ों की वजह से स्थानीय आबोहवा सेहतमंद हुआ करती थी। ये पेड़, सामाजिक वानिकी विभाग द्वारा वर्ष 1983-84 में रोपे गए थे। जानकारों का कहना है कि ये पेड़ भारी मात्रा में आक्सीजन उत्सर्जित कर रहे थे। एमडीए ने इन पेड़ों को बाजार में ऊंची कीमतों में बेचा। हालांकि कटान के साथ ही अधिकारियों के निवास स्थान की बाउंड्री भी घटाई गई है।
लाखों के पेड़, करोड़ों की हानि
एमडीए ने पहले चरण में 166, जबकि दूसरे चरण में 327 पेड़ों का कटान करवाया। इसमें से यूकेलिप्टस के 61 पेड़ों की कटान की गई, जिनकी औसतन कीमत दस हजार रुपए प्रति पेड़ आंकी जा रही है। पापड़ी की औसत कीमत भी दस हजार आंकी गई, जिसके 56 पेड़ बेचे गए। इन दोनों से ही एमडीए ने 12 लाख रुपए से ज्यादा कमा लिया जबकि कुल 493 पेड़ों को लेकर करीब तीन लाख रुपए से ज्यादा की आय जुटाने का अनुमान है। इन पेड़ों की प्रतिपूर्ति में एमडीए ने वन विभाग को 12 लाख रुपए दिया है, किंतु पौधरोपण की जमीन एवं संख्या अभी निर्धारित नहीं हुई। डिवाइडर पर लगाए पौधे अत्यंत छोटे, बीमार एवं लाचार नजर आते हैं। काटे गए पेड़ों से करोड़ों रुपए के आक्सीजन की हानि का अंदेशा है। हालांकि वन विभाग का कहना है गूलर, पाकड़, बेल, नीम, सहतूत, कनेर सरीखे प्रदूषण सोखने वाले पौधों की संख्या ज्यादा रोपी जाएगी।
बाक्स: करोड़ों की आक्सीजन डूबी
-पर्यावरण वैज्ञानिक डा. वंदना शिवा का आकलन है कि नीम, पीपल एवं बरगद जैसे पेड़ 20 वर्ष की उम्र तक 23.72 लाख रुपए कीमत की आक्सीजन देते हैं।
-एक व्यक्ति प्रतिदिन 11 हजार लीटर वायु ग्रहण करता है, जिसमें 20 फीसदी आक्सीजन होती है। इस प्रकार वह प्रतिदिन 550 लीटर का आक्सीजन ग्रहण करता है।
-2.75 लीटर आक्सीजन सिलेंडर की कीमत 6500 रुपए है, ऐसे में व्यक्ति हर वर्ष 13 लाख रुपए की आक्सीजन ले लेता है।
-एक वयस्क पेड़ प्रतिदिन 20 कारों द्वारा उत्सर्जित कार्बनडाइ आक्साइड का अवशोषण कर लेता है।
-वर्तमान पौधरोपण योजना का कोई भी वृक्ष पीपल एवं नीम की तरह भारी मात्रा में आक्सीजन नहीं उत्सर्जित कर सकता है।
बाक्स: कंगाल हरियाली
-जिले में 7923 हेक्टेयर क्षेत्रफल में पूरे भू-भाग का सिर्फ सात फीसदी वनावरण है।
-इसमें सिर्फ 2.7 फीसदी सघन वन क्षेत्र हैं।
-राष्ट्रीय मानक 33 फीसदी है।
-पांच जिलों में बंटी हस्तिनापुर वन्य जीव सेंचुरी में 55.02 वर्गमी आरक्षित वन भूमि, 47 वर्गमी जल भूमि, 20.40 वर्गमी. ग्राम समाज की भूमि एवं 8.81 वर्गमी. राजकीय भूमि है।
-वन विभाग द्वारा मनरेगा के तहत रोपे गए हजारों पौधे सूख चुके हैं।
-हर वर्ष पौधरोपण में अन्य तमाम विभाग खाता तक नहीं खोलते हैं।
-मेरठ-बुलंदशहर हाईवे पर सात से 24 किमी के बीच 4522 पेड़ काटे गए।
-मेरठ-करनाल हाईवे पर नानू की पुल तक 3324 पेड़ों की कटान की गई।
-गत पांच वर्ष में दस लाख से ज्यादा पौधे लगाए गए। किंतु अस्सी फीसदी पेड़ नष्ट हो गए।
-कैंपा निधि के तहत जिले में कटान का दस फीसदी पौधरोपण नहीं किया जा सका।
इनका कहना है..
कलक्ट्रेट और एसएसपी कार्यालय के समक्ष रोजाना लगने वाले जाम से हर कोई वाकिफ है। कलक्ट्रेट होते हुए कमिश्नरी कार्यालय, स्टेडियम और फिर अंबेडकर चौराहे तक फोर लेन सड़क बनने से यातायात व्यवस्था में सुधार ही होगा। सड़क विस्तार के लिए जितने भी पेड़ काटे गए हैं, उससे अधिक पेड़ लगाए जाएंगे। बाकी योजनाओं में तो एक्शन बाद में होता है, इस प्रोजेक्ट में तो पेड़ों को लगाया भी जाना शुरू कर दिया गया है। डिवाइडर को इसी मकसद से इतना चौड़ा बनाया गया है कि अधिक से अधिक पेड़ लगें और पेड़ों के कटान की भरपाई हो। डिवाइडर के बीच की जमीन की खुदाई कर पेड़ लगाए गए हैं।
-पंकज यादव, डीएम
-------------
विस्तारीकरण एवं सौन्दर्यीकरण के तहत पेड़ों का कटान किया गया। एमडीए इस योजना को संचालित कर रहा है। नए पेड़ों को लगाने के लिए एमडीए ने वन विभाग को 12 लाख रुपए जारी किया है। आठ फुट के पेड़ों को थालों में रखा जाएगा। इस वर्ष जिले में एक ही दिन में 6.77 लाख पौधे लगाने की योजना है।
मनीष मित्तल, डीएफओ
------------
पुराने पेड़ों को काटकर औने-पौने दामों में बेच दिया गया। इसके बदले में बीमार पौधे लगाए जा रहे, जो बीस वर्ष बाद भी कटे पेड़ों की भरपाई नहीं कर पाएंगे।
-गिरीश शुक्ला, महासचिव, जागरूक नागरिक एसोसिएशन।