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मैं कहीं भी रहूं..तेरी याद साथ है..

मेरठ : स्कूली जीवन की यादें सारी उम्र जहन में रहती हैं। यही कारण है कि स्कूल से निकलने के बाद कहीं भ

By Edited By: Published: Sun, 29 Nov 2015 12:28 AM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2015 12:28 AM (IST)
मैं कहीं भी रहूं..तेरी याद साथ है..

मेरठ : स्कूली जीवन की यादें सारी उम्र जहन में रहती हैं। यही कारण है कि स्कूल से निकलने के बाद कहीं भी जाएं, उसकी याद आती रहती है। कुछ ऐसा ही नजारा शनिवार को केंद्रीय विद्यालय डोगरा लाइंस में पुरातन छात्रों के लिए आयोजित एलुमनी मीट में देखने को मिला। विभिन्न वर्षो के दौरान स्कूल से पढ़कर निकले छात्र एकत्र हुए और अपने स्कूल से जुड़ी यादों को साझा किया। कुछ शरारतें याद आई तो कुछ अच्छी बातों की तस्वीरें आखों के सामने घूम गई। पुराने शिक्षक मिले तो उनकी डांट याद आ गई तो उनसे मिली प्रेरणा व सीख भी जहन में फिर ताजा हो उठी। कार्यक्रम का शुभारंभ शौर्य चक्र से सम्मानित ब्रिगेडियर एमश्री कुमार ने किया।

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इस अवसर पर देश के विभिन्न शहरों व यूएस से आए छात्रों ने रंगारंग प्रस्तुतियों में हिस्सा लिया। किसी ने गाने के माध्यम से अपनी याद ताजा की तो किसी ने उन गानों पर नृत्य कर अपनी खुशी का इजहार किया। छात्रों ने शिक्षकों को सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन शैलेंद्र त्यागी, शिक्षिका सविता भार्गव, हिजेंद्र पंत, पुनीत त्यागी एवं कपिल शर्मा ने किया। कार्यक्रम में पुरातन छात्रों में हर्ष सेठी, डा. रूप, डीआइजी एनएसजी बिग्रेडियर अनिल चौधरी, सीए राजीव अग्रवाल, कर्नल शैलेंद्र पंत आदि उपस्थित रहे। साथ ही इस अवसर पर पुरातन छात्रों ने खेल में स्कूल का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों को पुरस्कृत किया। विद्यालय के प्राचार्य अरविंद गौड़ ने पुरातन छात्रों को शुभकामनाएं दी।

याद आ गई वो कक्षा

-इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मैं यूएस से आया। स्कूल से निकलने के बाद पहली बार यहां आहर बेहद अच्छा अनुभव रहा। सारी शरारतें याद आने लगी।

-दीपक सिंह, 1994 बैच

-हम अपने स्कूल की प्रेयर बहुत मिस करते हैं। स्कूल के बाद वह प्रार्थना करने का अवसर नहीं मिला। अब यहां आकर वही अनुभव हो रहा है।

-नवनीत सिंह, 1997 बैच

-स्कूल के नए भवन में में आने वाले हम पहले विद्यार्थी थे। नया जोश था। नया माहौल था। सारी चीजें नई थी तो हमारे लिए नए स्कूल जैसा ही था।

-ब्रिगेडियर अनिल चौधरी, 1978 बैच

-स्कूल से मिले आत्मविश्वास के कारण ही हम इस मुकाम तक पहुंच सके। हम ताउम्र यहां के ऋणि रहेंगे। यहां आकर वही आत्मविश्वास दोबारा जाग उठता है।

-डा. रूप, 1978 बैच।


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