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वतन पे जाए जान भी तो हमको कोई गम नहीं..

मेरठ : पुरानी पीढ़ी के अनुभवों को आत्मसात कर अगली लड़ाई के लिए नई रणनीति बनाने की परंपरा फौज में बखूब

By Edited By: Published: Sun, 30 Aug 2015 12:51 AM (IST)Updated: Sun, 30 Aug 2015 12:51 AM (IST)
वतन पे जाए जान भी तो हमको कोई गम नहीं..

मेरठ : पुरानी पीढ़ी के अनुभवों को आत्मसात कर अगली लड़ाई के लिए नई रणनीति बनाने की परंपरा फौज में बखूबी निभाई जाती है। एक से दूसरी पीढ़ी को अपने अनुभव से सीख देने का सिलसिला शनिवार को सेना के पंजाब रेजिमेंट की 19वीं बटालियन की ओर से आयोजित विशेष सैनिक सम्मेलन में देखने को मिला। सन् 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान बिडोरी पर जीत की स्वर्ण जयंती के अवसर पर बटालियन की ओर से यह सम्मेलन कुलवंत सिंह स्टेडियम में आयोजित किया गया। इस मौके पर कर्नल ऑफ द रेजिमेंट व 16 कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल आरआर निंभोरकर ने बटालियन के फ‌र्स्ट डे कवर का विमोचन करते हुए सम्मेलन को संबोधित किया।

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पूर्वजों के गौरव से चौड़ी है छाती

कर्नल ऑफ द रेजिमेंट ने जवानों को संबोधित करते हुए कहा कि 50 वर्ष पूर्व की उपलब्धियों को देखकर आज गर्व से छाती चौड़ी हो जाती है। चोटियों की ऊंचाइयों को देख पूर्वजों के पराक्रम का एहसास होता है। उन्होंने कहा कि ऐसा मौका फिर आया तो सेना के जांबाज उस पराक्रम को दोहराने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। जवानों का हौसला बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, 'हमारा सामना करे किसी में इतना दम नहीं, अपने बाजू में है दम किसी से डरते हम नहीं'। साथ ही उन्होंने कहा कि 29 अगस्त के ही दिन बटालियन ने कारगिल लड़ाई के दौरान जम्मू-काश्मीर के किरनी गांव को भी दुश्मनों के कब्जे से छुड़ाया था।

पाक को लगा था फौजी धर्म का मुक्का

सन् 1965 के युद्ध में शामिल मेजर परमेंद्र ने पुराने साथियों को नमन करते हुए नई पीढ़ी को पुराने अनुभव से सीखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि देश की अखंडता में एकता की फौजी धर्म हैं और उसी एकता के मुक्के ने पाकिस्तान को चित कर दिया था। सम्मेलन के अंत में बैंड की धुन के साथ सभी ने बटालियन के गीत 'वतन के नौजवानों हम बहादुरी में कम नहीं, वतन पे जाए जान भी तो हमको कोई गम नहीं' पर वीरों को याद किया।

..नहीं बताते थे युद्ध की खबरें

इस मौके पर 19 पंजाब के पहले कमान अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल संपूरन सिंह ने पुत्र कर्नल सरबजीत सिंह भी उपस्थित रहे। साल 2007 में सेवानिवृत्त हुए कर्नल सिंह बताते हैं कि उस लड़ाई के दौरान वे महज 12 वर्ष के थे। युद्ध से लौटने पर जब भी पिता से कुछ पूछते थे तो वे अक्सर टाल दिया करते थे। कहते थे बाद में बताता हूं। कर्नल सिंह ने बताया कि वे बहुत ही विनम्र स्वभाव के थे इसलिए उन्हें अपनी उपलब्धियों का दिखावा करना अच्छा नहीं लगता था। जंग से लौटने के बाद लुधियाना के जगरून गांव में उनके भव्य स्वागत के दौरान कर्नल सिंह को पिता की उपलब्धियों का अंदाजा लगा था। उसके बाद पैतृक स्थल राजकोट के नथ्थोमल गांव में भी पूरे परिवार का सम्मान हुआ था। कर्नल सिंह का कमीशन 7 पंजाब बटालियन में हुआ था। उन्होंने 18 मेकनाइज्ड इंफैंट्री को कमान किया था।


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