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इस खेल में नहीं गलता लक का सिक्का

मेरठ : ग्रामीण अंचल में छायादार पेड़ों के नीचे चारपाई पर गोलाई में बैठे कुछ लोग। यह नजारा अक्सर ताश ख

By Edited By: Published: Thu, 30 Jul 2015 02:24 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jul 2015 02:24 AM (IST)
इस खेल में नहीं गलता लक का सिक्का

मेरठ : ग्रामीण अंचल में छायादार पेड़ों के नीचे चारपाई पर गोलाई में बैठे कुछ लोग। यह नजारा अक्सर ताश खेलने वालों का होता है। साधारण खेल कोठ पीस तो हर किसी को याद होगा। लेकिन अब वही खेल ब्रिज के नाम से दुनिया भर में पहचाना व खेला जाता है। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे हर समय दुनिया भर में करीब 10 से 12 हजार लोग ऑनलाइन खेलते मिलते हैं। समाज के वरिष्ठजनों में प्रचलित इस खेल की बारीकियां एक बार फिर शुक्रवार से एलेक्जेंडर क्लब में मेरठ ब्रिज एसोसिएशन की ओर से आयोजित प्रतियोगिता में देखने को मिलेगी। इस बाबत बुधवार को क्लब में आयोजित एक प्रेस वार्ता में संगठन के पदाधिकारियों ने जानकारी दी।

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बनेंगे हाथ, बढ़ेंगे अंक

कोठपीस की ही तरह ब्रिज में भी रंग बोलने के साथ ही अंक बनाने की घोषणा करनी पड़ती है। रंग बोलने वाले खिलाड़ी के पास न्यूनतम 12 अंक होने चाहिए। हर खिलाड़ी को 13-13 पत्ते बांटने के बाद रंग बोला जाता है। जिसके पास 12 अंक नहीं होते और एक रंग के पांच पत्ते नहीं होते तो वह ओपनर 'वन नो ट्रम' बोलता है। उसके बाद दूसरे खिलाड़ी को अवसर मिलता है। गेम जीतने के लिए यहां भी सात हाथ बनाने होते हैं।

एक गेम में 40 अंक

संगठन के सचिव सीपी अग्रवाल के अनुसार वैसे तो इस खेल के नियम बहुत अधिक हैं। सामान्य तौर पर समझा जाए तो इक्के के चार, बादशाह के 3, बेगम की दो और गुलाम के एक अंक होते हैं। इस तरह पूरे पत्ते में इन पत्तों के चार-चार अंक मिलाकर 40 अंक बैठते हैं। वहीं खेल में अंकों की गिनती अलग अंदाज में की जाती हैं। खेल में यदि कोई खिलाड़ी तीन अंक बनाने की बात कह कर उसे बनाता है तो उसके नौ अंक माने जाते हैं। साथ ही बोले हुए अंक न बना पाने से पेनाल्टी के तर्ज पर विरोधी टीम को प्वाइंट मिल जाते हैं।

एक बार ही बंटते हैं पत्ते

इस खेल में पत्ते एक बार ही बांटे जाते हैं। उन्हीं 13-13 पत्तों को अलग-अलग खिलाड़ियों के खेलने के लिए दिया जाता है। नजर इस बात पर होती हे कि उसी सेट से किस खिलाड़ी ने बेहतर अंक बनाए। यहां लक अर्थात किस्मत को कोई कनेक्शन काम नहीं करता है। जो बेहतर खेलता है उसे जीत हासिल होती है।

खेल देशी, नाम विदेशी

ऐसा बताया जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान एक ब्रिज अर्थात पुल की पहरेदारी में लगाए गए कुछ चौकीदार तास खेलते देखे गए। तब अंग्रेजों ने इस खेल को ब्रिज नाम दे दिया और धीरे-धीरे यह खेल देश से दुनिया में मशहूर होता चला गया।


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