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भाषणों से ऊबती पीढ़ी भी टकटकी लगाकर सुनती थी कलाम को

मेरठ : कमाल के थे कलाम साहब। जितना सुना था, वह उससे भी कहीं ज्यादा सरल और अपने नजर आए। सादगी की प्रत

By Edited By: Published: Tue, 28 Jul 2015 01:58 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jul 2015 01:58 AM (IST)
भाषणों से ऊबती पीढ़ी भी टकटकी लगाकर सुनती थी कलाम को

मेरठ : कमाल के थे कलाम साहब। जितना सुना था, वह उससे भी कहीं ज्यादा सरल और अपने नजर आए। सादगी की प्रतिमूर्ति। मिसाइल मैन। प्रेरक व्यक्ति। वैज्ञानिक। आविष्कारक। चिंतक यह सब मिलकर भी उनके अनूठे व्यक्तित्व को मुकम्मल तौर पर पेश नहीं कर पाते हैं। ऐसा मानना उन डाक्टरों का है, जिन्होंने आइएमए की सौंवी वर्षगांठ पर मिसाइलमैन के साथ काफी वक्त गुजारा। नेताजी सुभाषचंद्र सभागार में 18 अक्टूबर 2013 को डा. एपीजे अब्दुल कलाम का संबोधन सुनने बड़ी तादात में लोग पहुंचे थे। डा. कलाम का असर था कि संगोष्ठियों एवं भाषणों से ऊबती पीढ़ी भी सुनने को बेताब नजर आई। मिसाइल मैन ने बताया था कि परीक्षण के दौरान कई बार सेटेलाइट एवं मिसाइलों का प्रक्षेपण फेल हुआ, किंतु निराशा को स्थान नहीं दिया गया। आखिर जज्ब की जीत हुई और भारत एक परमाणु संपन्न राष्ट्र तक बन गया। डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने डाक्टरों से सीधी वार्ता कर उन्हें डाइग्नोस्टिक पेन देने से दूर रहने की हिदायत दी थी।


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