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गौरव से ज्यादा तेज दौड़ी 'मौत'

सरधना (मेरठ) : गौरव ने सोचा था कि सीआरपीएफ में भर्ती होकर घर-परिवार में मुफलिसी के मोर्चे को फतह कर

By Edited By: Published: Thu, 28 May 2015 01:43 AM (IST)Updated: Thu, 28 May 2015 05:21 AM (IST)
गौरव से ज्यादा तेज दौड़ी 'मौत'

सरधना (मेरठ) : गौरव ने सोचा था कि सीआरपीएफ में भर्ती होकर घर-परिवार में मुफलिसी के मोर्चे को फतह कर लेगा। इसीलिए दिन-रात एक कर बड़ी मेहनत की थी। मंगलवार को भर्ती में उसने अपनी फर्राटा दौड़ भी लगायी। लेकिन जिंदगी को मौत का ट्रैक मंजूर था। इस रेस में गौरव हार गया।

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गौरव के पिता बालेश्वर सोम कर्नाटक में प्राइवेट नौकरी करते हैं। परिवार में पत्नी और चार पुत्र व दो पुत्रियों का पालन-पोषण उनकी तनख्वाह से मुश्किल से हो पाता है। गौरव के बड़े भाई गोविंद और गोपाल हैं जबकि एक भाई अरविंद की कुछ समय पूर्व करंट की चपेट में आने से मौत हो गई थी। गोविंद गांव में ही छोटी सी दुकान चलाते हैं। इसके अलावा परिवार की आय का कोई साधन नहीं है। ऐसे में परिवार में सबसे छोटे गौरव परिजनों के लिए बड़ी उम्मीद थे। गौरव की सीआरपीएफ में भर्ती होने की तमन्ना थी। परिवार ने इसके लिए उनका हौसला बढ़ाया। गौरव ने भी भर्ती के लिए कड़ी मेहनत की। मंगलवार को भर्ती में उसने समय से पहले ही 5 किलोमीटर की 24 मिनट की रेस 19 मिनट में पूरी कर ली थी। इसके बाद वह चक्कर खाकर गिर गया। लेकिन अन्य अभ्यर्थी दौड़ रहे थे। सीआरपीएफ के जवानों ने बड़े भाई गोविंद को गौरव को उठाने नहीं दिया। गौरव की रोजगार के लिए शुरू की गई दौड़ मौत पर खत्म हो गई। इसके साथ ही गौरव को लेकर परिजनों के सपने भी चकनाचूर हो गए।

परिजनों ने भर्ती अधिकारियों पर ये लगाए आरोप

प्रवेश पत्र में रिपोर्टिंग टाइम सुबह 7 बजे था, मगर भीषण गर्मी में रेस साढ़े 10 बजे शुरू कराई गई।

मिट्टी के ट्रैक की जगह अभ्यर्थियों को पक्की सड़क पर दौड़ाया गया।

चक्कर खाकर गिरने के बाद भी गौरव को उसके भाई गोविंद ने तीन बार उठाने का प्रयास किया, मगर उसे रोक दिया गया।

रेस पूरी समाप्त होने पर ही गौरव को उठाकर अस्पताल ले जाया गया। इससे उपचार मिलने पर उसकी जान बच सकती थी।

पिता नहीं देख पाया अंतिम

बार गौरव का चेहरा

गौरव के पिता बालेश्वर सोम कर्नाटक में नौकरी करते हैं। पुत्र की मौत की सूचना उन तक पहुंची तो उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। अंतिम बार पुत्र का चेहरा देखने की उनकी तमन्ना भी दिल में ही रह गई। घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर होने की वजह से उनका एकदम आना मुमकिन नहीं था। ऐसे में पिता की गैरमौजूदगी में ही गौरव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। बालेश्वर सोम तीन दिन बाद घर पहुंचेंगे।


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