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आइटी पार्क पर संशय के बादल

मेरठ: किसानों ने मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी आइटी पार्क परियोजना पर ग्रहण लगा दिया है। शनिवार को वे

By Edited By: Published: Sun, 29 Mar 2015 02:43 AM (IST)Updated: Sun, 29 Mar 2015 02:43 AM (IST)
आइटी पार्क पर संशय के बादल

मेरठ: किसानों ने मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी आइटी पार्क परियोजना पर ग्रहण लगा दिया है। शनिवार को वेदव्यासपुरी स्थित आइटी पार्क के लिए आरक्षित स्थल पर गंगानगर, लोहियानगर और वेदव्यासपुरी के किसानों ने बैठक की। प्रतिकर संबंधी समस्या निपटने तक पार्क का काम नहीं होने देने का ऐलान किया। आंदोलन को नई धार देने के मकसद से रविवार को गंगानगर के तिलकपुरम् में किसान महापंचायत की घोषणा की।

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पिछले गुरुवार को हुई एमडीए की बोर्ड बैठक में जब किसानों को एक बार फिर वायदे का झुनझुना मिला तभी उन्होंने तय कर लिया था कि अब एकजुट होकर संघर्ष करेंगे। आइटी पार्क को आंदोलन के मुख्य निशाने पर रखने की भी घोषणा की थी। शनिवार को इसी कड़ी में वेदव्यासपुरी स्थित आइटी पार्क के लिए आरक्षित स्थल पर तीनों योजनाओं के किसान जुटे। संयुक्त संघर्ष समिति बनाने पर एकराय हुए। चौधरी अनिल सिंह को इसका अध्यक्ष, हरविंदर सिंह को महासचिव और रोहित कुमार को उपाध्यक्ष मनोनित किया गया। बैठक में निर्णय लिया गया कि रविवार को गंगानगर योजना स्थित कसेरू बक्सर के तिलकरपुरम में तीनों योजनाओं के किसान महापंचायत करेंगे। इसमें संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले आंदोलन की रूपरेखा बनाई जाएगी। इसमें तय किया जाएगा कि आगामी दिनों में एमडीए के कौन-कौन से कार्य रुकवाए जाएंगे।

हरविंदर सिंह ने कहा कि जब तक तीनों योजना के किसानों को शताब्दीनगर के समान बढ़ा हुआ प्रतिकर नहीं मिलेगा, आइटी पार्क में एक ईट नहीं लगने देंगे। इसके बाद नाराज किसानों ने आइटी पार्क के निर्माणाधीन बाउंड्रीवाल पर तोड़फोड़ की। बोर्ड उखाड़ कर फेंक दिया। बैठक में चौधरी अनिल सिंह, हरविंदर सिंह, रोहित कुमार, गजेंद्र सिंह, पोपीन, सत्यपाल सिंह, नरेश शर्मा, शंकरपाल, भूपिंदर सिंह आदि मौजूद रहे।

आइटी पार्क पर निशाना क्यों?

नगर के वेदव्यासपुरी में करीब ढ़ाई एकड़ में आइटी पार्क बनना प्रस्तावित है। यह मुख्यमंत्री की ड्रीम परियोजनाओं में शुमार है। इसकी प्रगति पर सीधे सीएम की नजर है। शासन की मंशा है कि एसटीपीआइ और एमडीए के बीच जल्द एमओयू (समझौता) हो और काम युद्ध स्तर पर शुरू हो। सपा सरकार इसे अपनी एक उपलब्धि के तौर पर पेश करने के मूड में है। किसान सोच रहे हैं कि यह काम रुकवा कर एमडीए और प्रशासन दोनों पर दबाव बनाया जा सकता है। उनकी बात सीएम तक पहुंच सकती है।


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