'मौत' के चौराहे और 'ठाठें' मारते पहरुए
संजीव शिवांश, मेरठ घर से निकलने के बाद आप सही सलामत वापस पहुंच जा रहे हैं तो यह आपकी खुशकिस्मती ह
संजीव शिवांश, मेरठ
घर से निकलने के बाद आप सही सलामत वापस पहुंच जा रहे हैं तो यह आपकी खुशकिस्मती है। या यूं कहें कि हादसों से जूझने या उन्हें मात देने की कला आपको आती है। वर्ना शहर का आलम तो यह है कि यहां सड़क-चौराहों पर चौबीस घंटे मौत दौड़ती है। इसलिए अगर हड्डियां 'बेजोड़' और सांसें महफूज रखनी हैं तो सावधान रहें, क्योंकि यातायात के पहरुए नींद में हैं, जो कराहें सुनकर भी नहीं टूटती। इंतहा यह कि तमाम मौतों और जख्मी देहों को देखने के बावजूद पुलिस की संवेदना नहीं जागी है। चूंकि ऐसे चौराहे कई सीमाओं में बंटे हैं, इसलिए इन मौतों की जिम्मेदारी लेने को भी कोई तैयार नहीं। इसकी अंदरूनी वजहें तो कप्तान ही बता पाएंगे, लेकिन फौरी तौर पर इस असंवेदनहीनता की एक ही वजह नजर आती है कि इन चौराहों को महफूज रखने की 'उन्हें' अलग से 'कीमत' नहीं मिलती।
जनपद मुख्यालय के कुछ चौराहे 'एक्सीडेंटल जोन' के रूप में घोषित हैं। इनमें मुख्य रूप से दैनिक जागरण चौराहे के अलावा मवाना रोड स्थित भगत लाइंस तिराहा एवं सोफिया स्कूल के नजदीक चिराग चौराहा शुमार है। अकेले जागरण चौराहे पर डेढ़ साल में छह मौतें और दो दर्जन से ज्यादा लोग लहूलुहान हो चुके हैं। यातायात के कायदे इन चौराहों के लिए भी बने हैं, पर ट्रैफिक सिपाहियों की ड्यूटी सिर्फ कागजी चार्ट पर लगती है। मौके पर छोड़िए, उनके दूर-दर्शन भी नहीं होते हैं।
दैनिक जागरण चौराहे की बात करें तो यह सर्वाधिक व्यस्त रहता है। यहां चौबीसों घंटे गाड़ियां दौड़ती हैं। वजह यहां से शहर के भीतर तो जाने का मुख्य मार्ग है ही, शहर को जोड़ने वाला बिजली बंबा बाइपास भी यहीं से निकलता है। पास में ही माल है और आसपास दुकानों-प्रतिष्ठानों के अलावा आबादी का भी विस्तार है। ऐसे में पूरे दिन और रात तक भारी आवाजाही और भीड़भाड़ रहती है। इसके बावजूद ट्रैफिक पुलिस की प्राथमिकता में यह चौराहा शामिल नहीं है। कारण साफ है। सामने मीडिया दफ्तर है, लिहाजा वसूली आसान हो नहीं पाती। कहने को यह लाइट वाला चौराहा है और प्राधिकरण व निगम की सौंदर्यीकरण वाली योजनाओं में शामिल भी है, लेकिन यहां अक्सर बत्ती गुल रहती है। इसकी भी माकूल वजह है कि अंधेरा कायम रहने पर वर्दीधारियों को 'पता नहीं चला' का बेतुका बहाना मिल जाएगा। लोग तो यह भी कह रहे हैं कि मिलीभगत से चौराहे के बिजली कनेक्शन काट दिए जाते हैं। पास की चौकी अक्सर बंद रहती है और सिपाही जहां-तहां मटरगश्ती करते रहते हैं। हकीकत आप खुद भी कभी देख सकते हैं।
हादसे न हों, इसका 'इंतजाम' तो इतने के बाद आप समझ गए होंगे, लेकिन दुखद यह है कि जान जाने या राहगीरों-यात्रियों की हड्डियां बिखरने के बाद भी महकमे के लोगों की तंद्रा नहीं टूटती। हादसे के बाद पुलिस सीमा का हिसाब लगाने लगती है। कारण यह कि कुछ चौराहे दो या उससे ज्यादा थाना क्षेत्रों में बंटे हुए हैं। उदाहरण के लिएच्बच्चा पार्क चौराहा 5, जागरण चौराहा 3 और बेगम पुल चौराहे की हद दो थानों की पुलिस में बंटी हुई है। जहमत गले न पड़े जाए, इसलिए हादसे की खबर पर भी पुलिस वक्त से नहीं पहुंचती। जबकि कप्तान के साफ आदेश हैं कि भले कई थानों की सीमा मिलती हो पर घटनाओं के मामले में कोई सीमाबंदी नहीं। कोई भी थाना पहले कार्रवाई करे बाद में केस को संबंधित थाने को भेजा जाएगा। पर ऐसे आदेश भी थानों की पुलिस हवा में उड़ा देती है।
टू व्हीलर्स पर चार, नहीं रोकती पुलिस
इसे अराजकता नहीं तो और क्या कहेंगे कि चौराहे पर जिन पुलिस वालों की ड्यूटी लगती है, वे एक तरफ बैठकर गपशप में लगे रहते हैं और उनके सामने ही टू व्हील्स पर तीन और चार लोग बैठकर गुजरते रहते हैं, वह न उन्हें टोकती है और न बिना हेल्मेट वालों को।
डग्गामार वाहनों की भी घुसपैठ
सुबह छह से रात दस बजे तक सभी भारी वाहनों के शहर में प्रवेश प्रतिबंधित हैं लेकिन दिल्ली रोड पर पुलिस किसी को नहीं रोकती। ऐसे वाहन भी दुर्घटनाएं कर रहे हैं और लोगों की जान ले रहे हैं।