लो आ गया सेंटा
मेरठ : 25 दिसंबर यानी क्रिस्मस-डे को प्रभु यीशु के जन्मदिवस के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। महान
मेरठ : 25 दिसंबर यानी क्रिस्मस-डे को प्रभु यीशु के जन्मदिवस के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। महानगर में भी लोग इस पर्व की तैयारी में जुट गए हैं।
यीशु मसीह का जन्म 24 दिसंबर को रात 12 बजे यरूशलम में एक चरनी में हुआ था। माता मरियम और पिता युसुफ के पुत्र यीशु का जन्म ही क्रिस्मस मनाने की मुख्य वजह है।
मनाने का तरीका-
वैसे तो इस पर्व की तैयारी महीने भर पहले से ही शुरू हो जाती है, लेकिन 21 दिसंबर की रात से पर्व की तैयारियां जोर पकड़ लेती हैं। इस दिन रात में बैल बजा कर व कैरल गा कर लोगों को जगाया जाता है और प्रभु यीशु के आने का शुभ समाचार दिया जाता है।
- 22 दिसंबर को ईसाई धर्मावलंबी अपने-अपने घरों में केक बनाते हैं। इस दिन बच्चे कैरल सिंगिंग द्वारा घरों में जाकर यीशु के आने की खबर देते हैं और बधाई संदेश देते हैं। सभी लोग उन्हें केक खिलाते हैं।
- 23 दिसंबर को लोग चर्च में खाना बनवाते हैं और सभी को खिलाते हैं। - 24 दिसंबर की रात को 12 बजे लोग प्रेअर करते हैं और कैंप फायर भी करते हैं।
- 25 दिसंबर को सुबह दस बजे चर्च में सामूहिक प्रार्थना की जाती है। सभी लोग सुबह आकर यीशु के आगे कैंडल जलाते हैं। चर्च के पादरी गानों के द्वारा प्रभु का संदेश लोगों को देते हैं। इसके बाद चर्च में केक काटकर सभी को बांटा जाता है।
इनका कुछ खास महत्व -
क्रिस्मस डे पर कैंडल, स्टार और क्रिस्मस बैल बाजार में खूब बिकती हैं। क्योंकि इनका ईसाई धर्म में विशेष महत्व है।
कैंडल- ईसाई लेाग कैंडल जलाकर यीशु की आराधना करते हैं, जिससे समाज में खुशियों व ज्ञान का प्रकाश फैलाया जा सके।
क्रिस्मस बैल - बैल का प्रयोग के पीछे मुख्य वजह इसको बजा-बजाकर लोगों को जगाया जाना और यह कहना है कि यीशु आने वाले हैं। उठो और खुशियां मनाओ।
स्टार- ईसाई समाज में स्टार की प्रमुख महता है। स्टार को यीशु के जन्म का प्रतीक माना गया है। तारे को देखते हुए ही लोग उनके जन्म स्थान पर पहुंचे थे। यही वजह है कि सभी ईसाई धर्मावालंबी अपने घरों में स्टार लगाते हैं।