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काली की सफाई को उठे थे चंद बुलबुले

संतोष शुक्ल, मेरठ काली नदी आखिर प्रदूषण की शर्मनाक दहलीज तक पहुंच गई, किंतु प्रयासों की रोशनी कभी

By Edited By: Published: Sat, 20 Dec 2014 02:00 AM (IST)Updated: Sat, 20 Dec 2014 02:00 AM (IST)
काली की सफाई को उठे थे चंद बुलबुले

संतोष शुक्ल, मेरठ

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काली नदी आखिर प्रदूषण की शर्मनाक दहलीज तक पहुंच गई, किंतु प्रयासों की रोशनी कभी नहीं चमकी। काली नदी का दर्द बढ़ा तो वह सेमिनारों में पसंदीदा विषय एवं संगठनों की जीवनरेखा बन गई। चुनावी मंचों से पीड़ा बनकर छलकी। विधानसभा एवं लोकसभा में भी तालियां बटोरीं लेकिन कोई भगीरथ तटों पर नहीं पहुंचा। राजनीतिक इच्छाशक्ति की वजह से नदी के कायाकल्प की आवाज बुलबुलों की तरह तलछटी में बैठती रही। आश्वासनों की बाढ़ के बीच नदी का कलेजा सूखता गया।

नब्बे के दशक में काली नदी में बढ़ते प्रदूषण पर नजर पड़नी शुरू हुई। स्थानीय स्तर पर नदी से ताल्लुक रखने वालों ने एहसास किया कि अब नदी का जल सिंचाई एवं हाथ पैर धोने योग्य भी नहीं रहा। गाजियाबाद में ¨हडन, मेरठ के आसपास काली एवं सहारनपुर में पांवधोई के प्रदूषण को एक साथ एहसास किया गया। वर्ष 1998 में कृषि एवं केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री सोमपाल शास्त्री ने भूजल बोर्ड की टीम के माध्यम से काली एवं आसपास के 76 गांवों का सर्वे करवाया। काली नदी के किनारे स्थिति गांवों में भूजल स्तर हजार फुट नीचे तक मिला। नदी को रिचार्ज करने के लिए नदी के आसपास स्थित सभी गांवों के जोहड़ों एवं तालाबों की रिपोर्ट खंगाली गई, जिसमें कइयों का वजूद ही नहीं मिला। गंगा एवं जमुना के बीच बसे क्षेत्र में भी टीकरी गांव में 1200 फुट नीचे पानी मिला। धंजू गांव में 75 फुट गहराई का पानी एल्कोहलयुक्त मिला था। यहां पर केन्द्रीय टीम ने काम करना शुरू किया, लेकिन सियासी दलों ने टीम को भगाकर दम लिया।

केन्द्रीय जल बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन सोमपाल शास्त्री ने काली नदी में प्रदूषण की गहन जांच करवाई। वर्ष 2001 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक नदी में भयावह प्रदूषण पाया गया। सोमपाल ने प्रभावित गांवों में पर्चे बंटवाकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया। सभी औद्योगिक इकाइयों को ईटीपी संचालन के लिए नोटिस दिए गए। इसी बीच केन्द्र की सरकार गिरने से प्रयास जहां का तहां रुक गया। उन्होंने नदियों के रिचार्ज के लिए नालों में ढलान बनाने की योजना भी तैयार की थी, जिससे बरसात का जल संग्रह किया जा सकता है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों को रिपोर्ट भेजकर आगाह किया गया, किंतु कोई प्रगति नहीं हुई। गैर सरकारी संगठनों ने नदी की पीड़ा को लेकर केन्द्र सरकार का दरवाजा खटखटाया। हालांकि नदी के आसपास बसे हुए गांवों को जागरूक बनाने का इमानदार प्रयास नहीं हुआ। गांव वालों ने भी खेती बाड़ी और राजनीति के बीच नदी को पिसने दिया। विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों में काली की सफाई का राग अलापा गया।

नगर निगम ने हाल में नदी की सफाई को ढोंग कर किनारों पर कचरे का ढेर जमा दिया, पर प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों पर कोई अंकुश न होने से हालात जस के तस हैं। देश के सर्वोच्च सदन तक काली नदी की चर्चा हुई,पर जमीनी स्तर पर प्रयासों का भयानक सूखा है।

इनका कहना है..

काली नदी पूरी तरह सियासी भंवर में फंसी हुई है। 15 वर्ष पहले केन्द्र सरकार ने नदी के साथ-साथ पास गांवों में तालाबों, जलस्रोतों का भी सर्वे कराया। इसके बाद न तो केन्द्र ने सुध ली, और न ही राज्य ने। गांव वालों को जागरूक करने में राजनीति आड़े आई, और काली वजूद के लिए लड़ रही है।

-सोमपाल शास्त्री, पूर्व केन्द्रीय कृषि एवं जल संसाधन मंत्री।

संसद में कई बार काली नदी के मुद्दे को उठा चुका हूं। केन्द्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को भी पत्र लिखा जा रहा है। लोगों से अपील है कि वह जागरूक होकर इसकी सफाई में योगदान दें।

-राजेन्द्र अग्रवाल, सांसद।


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