बाजार से 'गायब' हुईं दर्जनों दवाएं
मेरठ: महंगी होती चिकित्सा गरीबों की पहुंच से शायद बाहर रहेगी। दवा कंपनियों का रुख तो कम से कम यही बत
मेरठ: महंगी होती चिकित्सा गरीबों की पहुंच से शायद बाहर रहेगी। दवा कंपनियों का रुख तो कम से कम यही बताता है। केंद्र सरकार ने 348 दवाओं के मूल्यों पर शिकंजा कसा तो कंपनियों ने उन्हें बनाना कम कर दिया या बंद कर दिया। कई दवाएं बाजार से गायब हो गई। कई साल्टों में दूसरा साल्ट मिलाकर उसे कंट्रोल रेट सूची से बाहर कर लिया गया। सस्ती हो चुकी तकरीबन सभी दवाएं बाजार से नदारद हैं। चिकित्सक भी महंगी दवाएं लिखकर कंपनियों के मुनाफे का पूरा ध्यान दे रहे हैं।
केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने सस्ती दवा उपलब्धता के लिए 348 दवाओं को मूल्य नियंत्रण के दायरे में लाया। कंपनियों ने इन सभी साल्टों का रेट तय किया। इन साल्टों को कई गुना ज्यादा दामों के बेचने की आदी रही दवा कंपनियों ने फिर से काट निकाल ली। कई दवाओं का उत्पादन बंद कर दिया गया। कई दवाओं में नए साल्ट मिलाकर उसे डीपीसीयू से बाहर कर दिया गया। मूल्य नियंत्रण कटेगरी में आने के बाद बीटा ग्रुप की दवाओं की बाजार में तंगी है। वेटिनसोल इंजेक्शन, वेटनोवेट, बीटामेथॉसान, रेनिटीडीन, सिफकॅडाक्सिन, डाक्सीफ्लॉक्सीन, पेंटाप्रोजोल, रेबीप्रॉजोल, मलेरिया की रेजिज, पेट में कीड़ा मारने की जेंटिल सिरप एवं पैरामिसटामाल प्लेन समेत अन्य दर्जनों दवाओं की बाजार में तंगी पड़ गई है। केन्द्र सरकार 140 नई दवाओं को भी मूल्य नियंत्रण सूची में लेने का प्रस्ताव तैयार कर चुकी है, किंतु मरीजों को इसका फायदा नहीं मिला। दवा व्यवसायी रजनीश कौशल का कहना है कि जब तक लागत के आधार पर दवाओं की कीमत तय नहीं की जाएगी, तब तक उपभोक्ता पिसता रहेगा। असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर अनूप मलिक कहते हैं कि दवा मूल्य निर्धारण शासन के दायरे में नहीं आता।