..यहां घुटता है स्वच्छता का दम
मेरठ : 'स्वच्छ वातावरण में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है'। विद्यालयों में बालक-बालिकाओं को सबसे पहले यही पाठ पढ़ाया जाता है, लेकिन इसके विपरीत उन्हीं विद्यालयों में स्वच्छता कराह रही है। राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन की धज्जियां उड़ा रहे इन विद्यालयों में सबसे ज्यादा गंदगी शौचालयों में देखने को मिल रही है। हर दिन हजारों बच्चों के इस्तेमाल में आने वाले शौचालयों में ही बच्चों के सेहत की अनदेखी की जा रही है।
जाएं भी तो कैसे
राजकीय इंटर कालेज, मेरठ में विद्यार्थियों के लिए बने शौचालय दूर से अपनी बदहाली को बयां करते हैं। पानी की कमी को दूर करने के लिए वर्ष 1995 में यहां हौज बनवाई गई थी। इसके बाद वर्ष 2002-03 में 90 हजार शौचालय के नाम पर और वर्ष 2011-12 में फिर 50 हजार पानी व एक लाख रुपये शौचालय के नाम पर रमसा के तहत दिए गए। इसके बावजूद इसकी हालत बदतर बनी हुई है। विद्यार्थी कई बार इनका इस्तेमाल करने की बजाय पास की झाड़ियों में टायलेट करने जाते हैं। प्रधानाचार्य फतेह सिंह का कहना है कि विद्यालय में सफाई कर्मचारी की कमी थी, लेकिन अब इस पर ध्यान दिया जा रहा है।
कहीं आधा तो कही पूरा गेट गायब
मवाना स्थित नवजीवन किसान इंटर कालेज के बालिका अनुभाग में शौचालयों की हालत दयनीय है। यहां बने शौचालयों में किसी पर आधा तो किसी पर पूरा दरवाजा नदारद है। चारों ओर गंदगी पसरी दिखाई देती है। ऐसी स्थिति में छात्राएं शौचालयों का इस्तेमाल करने से कतराती है। स्कूल प्रबंधन का कहना है कि कुछ दिन पहले ही शौचालयों के दरवाजे चोरी हो गए। अब तक नए दरवाजे नहीं लगवाए जा सके हैं, जल्द ही इसकी व्यवस्था की जाएगी।
परीक्षितगढ़ स्थित राजकीय कन्या इंटर कालेज में 12 शौचालय हैं, लेकिन अधिकतर गंदगी से पटे पड़े हैं। बदहाली देख लगता है कि वषरें से उनकी सफाई नहीं हुई। कुछ शौचालय में तो पानी की व्यवस्था भी नहीं है। प्रधानाचार्या सुमन अग्रवाल ने बताया कि कालेज में करीब 1500 छात्राएं हैं, लेकिन सफाई के लिए केवल एक ही स्वीपर है।
कम हैं शौचालयों की संख्या
गांधी स्मारक देवनागरी इंटर कालेज में 1500 विद्यार्थियों में करीब 200 छात्राएं हैं। इनके लिए केवल दो शौचालय बने हैं। प्रधानाचार्य शाहिद हुसैन के अनुसार स्कूल का सबमर्सीबल खराब पड़ा है। शौचालय में पानी के लिए हैंडपंप लगे हैं। राजकीय इंटर कालेज हस्तिनापुर की उपप्रधानाचार्या ब्रजेश के अनुसार छात्राओं के लिए अलग शौचालय तो है, लेकिन छात्राओं की संख्या के अनुपात में शौचालय कम हैं।