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शहीद के पार्थिव शरीर के इंतजार में पथराईं आंखें

By Edited By: Published: Mon, 28 Jul 2014 01:23 AM (IST)Updated: Mon, 28 Jul 2014 01:23 AM (IST)
शहीद के पार्थिव शरीर के इंतजार में पथराईं आंखें

मेरठ : कश्मीर घाटी में शहीद हुए सेना के जवान अजय कौशिक का पार्थिव शरीर रविवार रात तक कुशावली गांव नहीं पहुंच सका। इंतजार में परिजनों की आंखें पथरा गईं। पूरा दिन शहीद के घर पर सांत्वना देने वालों का तांता लगा रहा। सोमवार सुबह शहीद का पार्थिव शरीर गांव पहुंचेगा, जहां राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि की जाएगी।

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कुशावली गांव निवासी अजय कौशिक (40) पुत्र श्रीचंद कौशिक आर्मी सप्लाई कोर में ट्रक चालक थे, जो कि कश्मीर के बारामूला जिले में तैनात थे। शनिवार सुबह सेना के अधिकारियों ने शहीद के परिजनों को अनहोनी की सूचना दी थी। सेना के अधिकारियों के मुताबिक अजय का पार्थिव शरीर रविवार शाम तक गांव पहुंचना था। इंतजार में परिजनों की आंख पथरा गईं। शोकाकुल परिजनों को सांत्वना देने के लिए रविवार को दिनभर लोगों का तांता लगा रहा। फौज स्तर पर परिजनों को बताया गया है कि सोमवार सुबह शहीद का पार्थिव शरीर कुशावली पहुंचेगा, जहां अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।

'बच्चों और अपना ध्यान रखना'

सरधना : शुक्रवार शाम करीब पौने सात बजे अजय ने पत्नी और बच्चों से बात हुई थी। इस दौरान बेटी कनिका और पुत्र हर्ष से अपना ध्यान रखने और ठीक से पढ़ाई करने को कहा था। साथ ही छुट्टी लेकर जल्दी घर आने की बात भी बताई थी। पिता के कभी नहीं लौटने की जानकारी होने पर दोनों बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल हो गया। पत्नी भी बेसुध हो गई।

विधायक और तहसीलदार भी पहुंचे

सरधना : विधायक संगीत सोम भी रविवार दोपहर शहीद अजय कौशिक के घर पहुंचे और परिजनों को ढांढस बंधाया। तहसीलदार महेंद्र बहादुर सिंह ने भी शहीद के परिजनों को सांत्वना दी।

घटनाक्रम बताने से क्यों बच रहे अधिकारी?

सरधना : अजय कौशिक के शहीद होने की सूचना सेना के अधिकारियों ने उनके परिजनों को दी, लेकिन घटनाक्रम बयां नहीं किया। बहरहाल, अजय के परिजनों को अब तक यह नहीं मालूम चल सका है कि किस घटनाक्रम में उनका लाल शहीद हुआ।

दरअसल, शनिवार को बारामूला जिले में आतंकवादियों ने ग्रेनेड से हमला किया था। इस हमले में अजय कौशिक के शहीद होने की जानकारी मिली थी, लेकिन अब तक इसकी पुष्टि नहीं हो सकी। 'दैनिक जागरण' ने अजय कौशिक की बटालियन के मेजर ढिल्लन को फोन कर उनकी शहादत का घटनाक्रम जानने का प्रयास किया, लेकिन वह इस संबंध में कुछ भी कहने से बचते रहे। अधिकारियों का यह रवैया किसी के गले नहीं उतर रहा है।


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