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अंग्रेज अफसरों के सामने गूंजा था नो..नो..नो

By Edited By: Published: Thu, 24 Apr 2014 01:35 PM (IST)Updated: Thu, 24 Apr 2014 01:35 PM (IST)
अंग्रेज अफसरों के सामने गूंजा था नो..नो..नो

मेरठ : अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिलाने को आज ही के दिन मेरठ की माटी से आवाज बुलंद हुई थी। बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे के विरोध करने के बाद मेरठ छावनी में भी भारतीय सैनिकों ने चर्बी वाले कारतूसों के विरोध का मन बना लिया था। गुलाम की तरह अंग्रेज अफसरो के हर हुकुम मानने वाले भारतीय सिपाहियों ने विरोध के लिए कमर कस रखी थी। 24 अप्रैल को अंग्रेजी हुकूमत के आदेश को मानने से मना करने का बीड़ा 85 सैनिकों ने उठाया जो प्रथम स्वाधीनता संग्राम की क्रांति के रूप में स्वर्णाक्षरों से लिखा गया।

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24 अप्रैल की समूची घटना और उसके बाद की तमाम घटनाओं का जिक्र जॉर्ज डब्ल्यू फॉरेस्ट की पुस्तक 'सलेक्शन फ्रॉम द लेटर्स डिसपैचेज एंड अदर स्टेट पेपर्स प्रिज‌र्व्ड इन द मिलिट्री डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट ऑफ इंडिया 1857-58 वॉल्यूम 1' में आता है। 24 अप्रैल, 1857 को सुबह परेड के दौरान ही अंग्रेज अफसर के कहने पर सूबेदार मेजर ने नए कारतूस को लोड कर फायर का तरीका बताया। इसके बाद भारतीय सिपाहियों को ऐसा ही करने को कहा गया। कतार में खड़े 90 में से 85 सैनिकों ने नो..नो..नो कहकर मुखालफत दर्शा दी थी।

..बगावत से डर गई थी अंग्रेजी फौज

पुस्तक में जिक्र है कि आदेश की अवहेलना के बाद किस तरह से अंग्रेज अफसर आगबबूला हो गए थे और इसके बाद से ही अनुशासनहीनता पर कड़ा संदेश देने के लिए कोर्ट मार्शल की कार्रवाई शुरू कर दी गई। मेरठ संग्रहालय के संग्रहालयाध्यक्ष मनोज गौतम का कहना है कि इस पुस्तक में शामिल दस्तावेज बताते हैं कि मेरठ छावनी में भारतीय फौजियों की बगावत से अंग्रेजी फौज किस कदर डर गई थी कि आनन-फानन में कोर्ट मार्शल की कार्रवाई को अंजाम दिया गया।

पुराने कारतूसों की तरह ही थे कारतूस

कोर्ट मार्शल की प्रोसिडिंग्स पढ़ें तो भारतीय जवानों के खिलाफ गवाही देने वाले गवाहों की ओर से यही कहा गया है कि जो कारतूस उस दिन दिखे वह पुराने कारतूस जैसे ही थे। एक दिन पहले से ही नए कारतूस को लेकर संदेह था कि यह जानवरों की चर्बी से बना हुआ है, इसलिए हम हिचक रहे थे, जबकि कोर्ट मार्शल के दौरान आरोपी भारतीय सैनिकों ने स्पष्ट बताया कि वे चर्बी वाले कारतूस को कतई स्वीकार नहीं कर सकते इसलिए उसका खुले तौर पर विरोध किया। गवाही के दौरान हिन्दू-मुस्लिम जवानों के बीच खाई भी पैदा करने की कोशिश की गई थी, लेकिन एकता ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया।

शहादत की सूची में पहला नाम मातादीन का

मेरठ : प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में जिन 85 भारतीय सैनिकों ने बगावत की और शहादत को गले लगाया उन शहीदों की सूची में पहला नाम हवलदार मातादीन वाल्मीकि का है। एक योद्धा के तौर पर मातादीन वाल्मीकि का जिक्र कई पुस्तकों में भी आया है। मेरठ छावनी में उनकी याद में एक स्मृति द्वार बनाने की कवायद की गई थी, जो आज तक सिरे नहीं चढ़ सकी है।


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