आलू की करें ¨सचाई, पाला से बचाएं
करहां (मऊ) : आलू उत्पादक किसानों के लिए प्रतिवर्ष पाला और झुलसा रोग मुसीबत लेकर आता है। ठंड बढ़
करहां (मऊ) : आलू उत्पादक किसानों के लिए प्रतिवर्ष पाला और झुलसा रोग मुसीबत लेकर आता है। ठंड बढ़ने के साथ इनका प्रकोप खेतों में नजर आने लगता है। इसे अगर नजरअंदाज कर दिया गया तो फिर उत्पादन प्रभावित हो जाता है। इसे बचाने के लिए किसान थोड़ा एहतियात और कुछ दवाओं का छिड़काव कर रोगों के प्रभाव से फसल नुकसान होने से बचा सकते हैं।
प्रतिवर्ष ठंड अपने साथ भीषण शीतलहर लेकर आती है। इससे आलू उत्पादक किसानों को जूझना पड़ता है। सैकड़ों एकड़ आलू की फसल पाले और ब्लाइट के कारण चौपट हो जाती है। लगातार गिरते पारे ने इसकी आशंका बढ़ा दी है। शीतलहर देखकर किसानों को अब आलू के पौधों की सुरक्षा की ¨चता सताने लगी हैं। फिलहाल मौसम के मिजाज में भी ठंडक बढ़ती जा रही है। ऐसे में आलू उत्पादक किसानों को फसल पर ध्यान देना अति आवश्यक है। एडीओ एग्रीकल्चर अखिलेश्वर ¨सह का कहना है कि आलू को पाले की मार से बचाने के लिए खेतों में नमी बनाए रखने पर ध्यान देना होगा। अगर खेत में झुलसा रोग की संभावना है तो मैंकोजेब दवा का सवा किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। यदि खेत में झुलसा रोग लग चुका है तो इसमें मैंकोजेब और मेटालैक्सिल के मिश्रण वाली दवा का छिड़काव किया जाना चाहिए। यह दवा दो ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग की जाए। इस हिसाब से एक किलोग्राम दवा का उपयोग एक हेक्टेयर आलू में करना चाहिए।
पाला के लक्षण-
इस रोग में आलू की पत्तियों पर छोटी-छोटी काली ¨बदी पड़ जाती है जिनके रोकथाम पर ध्यान न दिया जाए तो यह बढ़ने लगती हैं।
झुलसा रोग-
इसके प्रभाव में आलू की पत्तियों पर दाग बनने लगतें हैं, साथ ही इनकी निचली सतह पर महीन रोएं दिखाई देने लगते हैं।
बचाव के उपाय-
आलू की फसल को पाले से बचाने के लिए खेत में नमी बनाए रखना आवश्यक है। इसके लिए हल्की ¨सचाई की जा सकती है परंतु इस बात का विशेष ध्यान रहे कि खेत में ज्यादा मात्रा में पानी न लगे। झुलसा के लिए दवाओं के उचित इस्तेमाल में ही समझदारी है।