डीजी हेल्थ के हस्तक्षेप के बाद हुआ पोस्टमार्टम
मऊ : थाना सरायलखंसी क्षेत्र के एक गांव में हैवानियत की शिकार सात वर्षीया मासूम के पोस्टमार्टम में प्
मऊ : थाना सरायलखंसी क्षेत्र के एक गांव में हैवानियत की शिकार सात वर्षीया मासूम के पोस्टमार्टम में प्रशासन को पूरी कसरत करनी पड़ी। उसके शव का विधि-सम्मत पोस्टमार्टम कराने को तत्पर पुलिस अधीक्षक से लगायत डीआइजी तक को स्वास्थ्य विभाग की लेट-लतीफी का सामना करना पड़ा। बाद में डीजी हेल्थ के हस्तक्षेप के बाद मासूम के शव का पोस्टमार्टम कराया जा सका।
प्रशासन मासूम के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या जैसे जघन्य कृत्य के मामले में कोई कोताही नहीं बरतना चाहता था। इसके लिए पुलिस अधीक्षक ने तीन चिकित्सकों की टीम पोस्टमार्टम के लिए बनाई थी। इसमें नियमानुसार एक महिला चिकित्सक को शामिल किया गया था। यह सारा पोस्टमार्टम विधि विज्ञान प्रयोगशाला के विशेषज्ञ वैज्ञानिक डॉ. राहुल की मौजूदगी में होना था। चूंकि अभी तक महिला चिकित्सकों की ड्यूटी पोस्टमार्टम में नहीं लगती थी, इस कारण असमंजस में पड़ी पैनल में शामिल महिला चिकित्सक ने अंत्य परीक्षण करने से इन्कार कर दिया। इसके बाद जिला महिला अस्पताल की सीएमएस को पीएम के लिए तैयार किया गया। अपना नाम सुन वे भी पशोपेश में पड़ गईं। उन्होंने इसके लिए लिखित आर्डर व किस नियम के तहत उन्हें पोस्टमार्टम में भेजा जा रहा है। इस का स्पष्टीकरण देने की मांग कर दी। पोस्टमार्टम में हो रही देरी से एडी हेल्थ आजमगढ़ भी काफी परेशान हो गईं। अंतत: मामला डीजी हेल्थ तक पहुंच गया। स्वास्थ्य महानिदेशक भी महिला ही हैं। उन्होने तुरंत यहां के सीएमओ व सीएमएस से कहा कि इसमें लापरवाही करने वाली उक्त डाक्टर का डाटा भेजा जाए। साथ ही बताया कि निर्भया कांड के बाद से रेप केस में मृत्यु होने पर पीएम में महिला चिकित्सक का होना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके बाद मासूम के शव का पोस्टमार्टम हो सका।
इनसेट--
निर्भया कांड के बाद महिला चिकित्सकों को भी सौंपी गई जिम्मेदारी
यह सही है कि पोस्टमार्टम में अधिकांशतया पुरूष डाक्टरों की ही ड्यूटी लगती है पर दिल्ली की निर्भया कांड के बाद नियमों में बदलाव हुआ। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रायल द्वारा महिला शवों के पोस्टमार्टम के लिए महिला चिकित्सकों का रहना अनिवार्य कर दिया गया है।