बेहद कड़वा है आवासीय योजना का सच
घोसी (मऊ) : बड़रांव ब्लाक की ग्राम पंचायत हेमई के राजस्व ग्राम अहिरानी बुजुर्ग की दलित बस्ती के विजई
घोसी (मऊ) : बड़रांव ब्लाक की ग्राम पंचायत हेमई के राजस्व ग्राम अहिरानी बुजुर्ग की दलित बस्ती के विजई हरिजन का गुजारा बांस के सहारे टिकी फूस की छत के नीचे होता है। दरसू, रामानन्द, संजय गुलाब सुबास, रामदेव एवं कत्लू के कच्चे घरों से गरीबी झांकती है। इसी ब्लाक में घोसी तहसील मुख्यालय के समीप लबे रोड स्थित गांव जमालपुर विक्कमपुर में योजना का लागू होना नामुमकिन है। यहां की बंजारा बस्ती में झोपड़ियों की भरमार है। एक झोपड़ी में गुजारा करने वाले बड़रांव ब्लाक की ही ग्राम पंचायत भिखारीपुर के ग्राम डेराघाट के विजई, पुलिया एवं बेवा कृष्णावती को अरसे से आवास की आस है।
हर वर्ग के गरीब एवं आवास विहीन व्यक्ति के सिर पर छत की छांव प्रदान करने के लिए तमाम आवासीय योजनाएं संचालित हैं। बदलती सरकारों ने इन योजनाओं का नाम भले ही बदला पर गरीबों एवं आवासहीनों की किस्मत नहीं बदली। पूर्व में संचालित महामाया आवास एवं सर्वजन महामाया आवास, कांशीराम शहरी आवास अब बंद कर दी गई हैं। इंदिरा आवास, अल्पसंख्यक व विकलांग आवास एवं लोहिया आवास योजनाएं ही इन दिनों संचालित हैं। उधर समस्या यह कि कहीं स्थायी बीपीएल सूची में पात्रों का नाम नहीं तो अपात्रों की भरमार है। पात्र होने के बावजूद गंवई राजनीति के चलते आवास हेतु प्रस्ताव में नामित होना भी आसान कार्य नहीं है। उधर आवासीय योजनाओं की बाबत शासन की प्राथमिकता इन दिनों महज लोहिया गांवों तक ही सिमटी होने के कारण अन्य गांवों के पात्र बस इंतजार को विवश हैं।
सभी आवासीय योजनाओं हेतु लाभार्थी का नाम बीपीएल स्थायी पात्रता सूची में होना अनिवार्य है। जनपद में यूं तो बीपीएल सूची में 116424 व्यक्तियो के नाम है जिनमें से स्थाई आवास पात्रता सूची में 67982 परिवारों को स्थान मिला है। इसमें अपात्रों का नाम दर्ज होने के चलते तमाम गरीब आज भी आवास को तरस रहे है। बीपीएल स्थायी सूची में नाम नहीं होने से आवास नहीं मिल सकता है। ऐसे में सवाल यह कि सूची में अमीरों का नाम डालकर गरीबों के साथ क्रूर मजाक करने वाले के विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं होती है। बहरहाल आनन-फानन में हुए सर्वे के बाद बनी सूची की अनियमितता जब तक दूर नहीं होती तब तक गरीब के सिर पर छत की आस अधूरी ही रहेगी।
इनसेट..
आवास के नाम पर धन उगाही
आवास के नाम पर कभी बिचौलिए तो गाहे-बेगाहे कर्मचारी और प्रधान द्वारा भी धन वसूली किए जाने के मामले दबी जुबान में उठते रहे हैं।