Move to Jagran APP

पर्यटन स्थल के रूप में हो विकास

घोसी (मऊ) : नगर के बीचोबीच राजा नहुष की कोट के गर्भ में छिपे इतिहास से दुनिया अनभिज्ञ है। इसमें हजार

By Edited By: Published: Sat, 22 Nov 2014 07:59 PM (IST)Updated: Sat, 22 Nov 2014 07:59 PM (IST)
पर्यटन स्थल के रूप में हो विकास

घोसी (मऊ) : नगर के बीचोबीच राजा नहुष की कोट के गर्भ में छिपे इतिहास से दुनिया अनभिज्ञ है। इसमें हजारों वर्ष का इतिहास एवं दो कालखंडों की सभ्यता छिपी है। यहीं से कुछ दूर है हजारों एकड़ में फैला पकड़ी ताल जिसमें खिले कमल पुष्पों के बीच नौकायन एक अलग रोमांच है। यहीं से 13 किमी दूर है गोंठा जहां आज भी भगवान बुद्ध से जुड़े तमाम अवशेष बिखरे है। दो हरियों के मिलन स्थली दोहरीघाट का मुक्ति धाम सहज ही आकर्षित करता है। इन तमाम अहम स्थानों के बावजूद इस क्षेत्र की पर्यटन महत्ता हाशिए पर है। इस क्षेत्र को पर्यटन का दर्जा मिले तो विकास के नए आयाम स्थापित होंगे, साथ ही पूरे जनपद की सूरत और सीरत बदल जाएगी।

loksabha election banner

राजा नहुष की कोट को इक्ष्वाकु वंश के चक्रवर्ती राजा नहुष से जोड़ा जाता है। किले के चारों तरफ आज भी खाई विद्यमान है। इतिहासकार इसे एक समृद्ध राज्य की राजधानी का प्रमाण बताते है। पांच वर्ष पूर्व इतिहास में विशेष रुचि लेने वाले आईजी विजय कुमार ने किले में छिपी दीवारों की तलाश के बाद यहां दो कालखंडों का इतिहास छिपा होने का दावा किया। कुछ वर्ष पूर्व महज पांच फीट की गहराई पर मिली कुषाण काल की प्रतिमाएं एवं किले पर बिखरे टेराकोटा के बर्तनों के अवशेष इसकी पुरातात्विक महत्ता का संकेत देते है।

30 जून 2010 को कोट पर केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की खोदाई के दौरान मिली मिट्टी की बनी नक्काशीदार प्रतिमाओं के अवशेष कुषाण काल से भी एक हजार वर्ष पूर्व की होने का अनुमान लगाया जाता है। नाग की छतरी मिलने से स्पष्ट है कि घोसी का अस्तित्व आर्यावर्त के प्रमुख राजा सम्राट वीरसेन द्वारा स्थापित नागवंश काल में भी था। सिंधु घाटी की सभ्यता के लिपिवेत्ता एवं स्वतंत्र रिसर्चर वीरेंद्र कुमार झा कोट पर मिले हड्डी के टुकड़ों की फोरेसिक जांच के बाद ही सही काल गणना किए जाने की बात करते है पर इस कोट के हजारों वर्ष पूर्व भी आबाद होने का दावा करते है।

गोंठा : जहां गूंजी थी गौतम बुद्ध की वाणी

यहां से 13 किमी दूर गोंठा में तो बौद्धकालीन गोष्ठी स्थल पर आज भी कुषाणकालीन प्रतिमा मौजूद है। बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन ने भी इस गांव का जिक्र किया है। यहीं पर भगवान बुद्ध ने भाई आयुष्मान नंद को धम्म का उपदेश दिया था।

मनोरम पकड़ी ताल : नौकायन का आनंद ही कुछ और

घोसी से कुछ ही दूर स्थित है पकड़ी का विशाल ताल जहां आज भी विदेशी पक्षी आते है। ताल में नौकायन की तमाम संभावनाएं है। यहां पर खिलने वाले कमल पुष्पों की अलग ही पहचान है। ऐसे में इस क्षेत्र में निर्विवाद रूप से पर्यटन की तमाम संभावनाएं छिपी है। ऐसे में इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल का रूप मिला तो निश्चित ही विकास भी होना तय है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.