सूर्य के दर्शन-पूजन से मिलती है आरोग्यता
नदवासराय (मऊ) : सूर्य की उपासना भारतीय संस्कृति का सदा से ही अभिन्न अंग रही है। कार्तिक मास में होने
नदवासराय (मऊ) : सूर्य की उपासना भारतीय संस्कृति का सदा से ही अभिन्न अंग रही है। कार्तिक मास में होने वाली छठ पूजा वस्तुत: सूर्य देव की ही आराधना है। सूर्य की उपासना के तर्क भी हैं। दरअसल सूर्य मानव मात्र के लिए अत्यंत उपयोगी है। हमारी संस्कृति में पालन पोषण करने वाले और मुश्किलों से उबारने वाले को ही भगवान मानकर पूजा जाता है। सूर्य नारायण बिना किसी भेदभाव के सबको नित्य दर्शन, उर्जा और आरोग्यता देते हैं। वे जीवन के देवता हैं। पेड़-पौधे वनस्पतियां और मनुष्य सभी उनसे ही अनुप्राणित हैं।
प्रकाश ताप और उर्जा के अक्षय स्रोत भगवान सूर्य के प्रति मानव आदिकाल से ही श्रद्धावनत रहा है। सूर्य को जीवन शक्ति और अक्षय उर्जा के कारण उनकी पूजा की प्रथा संसार की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत, चीन आदि से मिलती है। ऋग्वेद में भी सूर्य महिला का उल्लेख है। सूर्य देव आकाश में उदित होकर गरीब-अमीर सभी को अपनी रश्मियों से उर्जा प्रदान करते हैं। पुराणों में उल्लेख है कि सूर्य की आराधना से तन मन स्वस्थ रहता है। वैज्ञानिकों ने भी इसे माना और सूर्य चिकित्सा की पद्धति विकसित हुई। वाल्मीकि रामायण में रावण पर विजय प्राप्त करने से पूर्व भगवान श्रीराम के द्वारा सूर्योपासना किए जाने का विवरण मिलता है।
रानीपुर प्रतिनिधि के अनुसार छठ की आस्था का सैलाब गोकुलपुरा, रानीपुर कुटी, रानीपुर चंदना, पिरूआ, पलिया, फतहपुर, चकिया, पड़री, काझा आदि जगहों पर व्रती महिलाओं ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान भास्कर से पूरे परिवार की मंगल की कामना की।