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ऐ जालिमों ये फातमा जहरा का लाल था

घोसी (मऊ) : 'प्यासा था तीन रोज से गम से निहाल था, ऐ जालिमों ये फातमा जहरा का लाल था।' अंजुमन मासूमिय

By Edited By: Published: Wed, 29 Oct 2014 08:45 PM (IST)Updated: Wed, 29 Oct 2014 08:45 PM (IST)
ऐ जालिमों ये फातमा जहरा का लाल था

घोसी (मऊ) : 'प्यासा था तीन रोज से गम से निहाल था, ऐ जालिमों ये फातमा जहरा का लाल था।' अंजुमन मासूमिया रजिस्टर्ड के नौहा खां जफर अली ने हमनवां दुरूल हसन, फैजुल हसन एवं जीशान हैदर ने करबला में इमाम हुसैन की शहादत के बाद मासूम सकीना का दर्द इस नौहा के जरिए बयान किया।

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अजाखाना अब्बासी बीबी में मंगलवार की रात अशर-ए-मोहर्रम की चौथी मजलिस शुरू हुई। मौलाना अली रजा ने कहा कि इमाम हुसैन के बंदे कभी दहशतगर्द नहीं हो सकते हैं। इमाम हुसैन का मातम करने वाले किसी भी व्यक्ति पर आज तक दहशतगर्दी का इल्जाम नहीं लगा है। इमाम हुसैन का मरतबा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक ने माना है। जुलूस के दौरान जनाब अहमद ने मरशिया पढ़ा। साहिबे ब्याज जफर अली रमजान ने नौहों के माध्यम से तीन वर्ष की मासूम बच्ची सकीना के उस वह दर्द को जो उसने अपनी फूफी को बयान किया, पेश किया। यजीदी फौज का कहर सुन सभी अश्कवार हो गए। मासूम सकीना की बात सुन जैनब तड़प उठी थी तो बड़ागांव में नौहा सुन मजलिस में शरीक हर अजादार चीत्कार कर उठा।


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