आज भी है बताशे का महत्व
नौसेमरघाट (मऊ) : त्योहारों, वैवाहिक कार्यक्रमों में खोआ, काजू, बादाम या सिंथेटिक दूध से बनी रंग-बिरं
नौसेमरघाट (मऊ) : त्योहारों, वैवाहिक कार्यक्रमों में खोआ, काजू, बादाम या सिंथेटिक दूध से बनी रंग-बिरंगी मिठाइयां भले ही लोगों को आकर्षित करती हों मगर दीपावली व भैयादूज में चीनी से बनी मटकियां, खिलौना व बताशों का अलग ही महत्व है। विद्वानों का मानना है कि धार्मिक अनुष्ठानों मांगलिक व वैवाहिक आयोजनों में बताशे का महत्व है। सत्यनारायण व अन्य व्रत कथाओं में बताशे के बगैर पूजा अधूरी है। खासकर भैया दूज के त्योहार में बहनें चीनी से निर्मित खिलौनों, घरिया के साथ मां गौरी, गणेश का पूजन कर उपवास रख भाई के दीर्घायु होने की कामना करती हैं।
मिठाई चाहे बादाम की हो या काजू की या फिर कितनी भी महंगी क्यों न हो मगर उसका उपयोग पुरोहित वर्जित मानते हैं। इसका कारोबार करने वाले व्यापारियों ने बताया कि बताशे तो हम हमेशा बनाते हैं मगर खिलौना या घरिया केवल दीपावली व भैयादूज के त्योहार में बनाए जाते हैं। उनका मानना है कि चीनी की आसमान छूती महंगाई के चलते धंधा थोड़ा मंदा हो गया है।
एक समय था जब कोपागंज बाजार के चीनी से बने घरिया, खिलौने व बताशे आसपास के क्षेत्रों की बाजारों की शोभा बढ़ाया करते थे। कारखानों की भट्ठियां बुझती ही नहीं थी और कारीगर शिफ्टों में काम करते थे। ढाई दशक पूर्व मेहमानों को लोग बताशा ही पानी पीने को देते थे। मांगलिक कार्यो में लड़कियों की विदाई आदि में भी झपोली में बताशा दिया जाता था लेकिन अब यह भी चलन बंद हो गया है।