कायस्थ देव चित्रगुप्त के पूजन की तैयारी
मऊ : लेखनी और मसि (स्याही) के आविष्कारक आदि कायस्थ देव भगवान चित्रगुप्त की जयंती कार्तिक शुक्ल पक्ष
मऊ : लेखनी और मसि (स्याही) के आविष्कारक आदि कायस्थ देव भगवान चित्रगुप्त की जयंती कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया शनिवार को मनाई जाएगी। कायस्थ वंशज अपने कुलदेव संपूर्ण चराचर सृष्टि के रचयिता प्रजापिता ब्रह्मा के अंश भगवान चित्रगुप्त के साथ ही अपनी आजीविका के साधन कलम-दवात की पूजा भी इसी दिन करते है। पुराणों के अनुसार आदिदेव भगवान चित्रगुप्त धर्मराज के दरबार में समस्त प्राणियों के कर्मो के आधार पर स्वर्ग एवं नरक का आवंटन करते है। इन्हें ही सृष्टि के निर्माण के पश्चात संपूर्ण बौद्घिक कार्यो की प्रतिस्थापक व प्रथम प्रणेता भी माना जाता है।
पौराणिक आख्यानों के अनुसार सृष्टि की रचना के बाद ब्रह्माजी चिंतातुर हो गए। कारण था सकल सृष्टि की देखरेख एवं लेखा-जोखा रखना। कोई उपाय न सूझा तो वह 12 हजार वर्ष तक की अखंड समाधि में लीन हो गए। तदंतर जब नेत्र खुले तो सामने सांवले वर्ण का मुस्कुराता सुदर्शन बालक खड़ा था जिसके हाथ में कलम और दवात थी। बियाबान में इस तेजस्वी बालक को देख भगवान ने परिचय पूछा। बालक बोल पड़ा-भगवन मैं तो आप की ही काया एवं अस्थियों से उत्पन्न हूं। मेरा न कोई वर्ण है ना कोई परिचय। ब्रह्मा जी ने कहा कि मेरी काया से उत्पन्न हो अतएव तुम कायस्थ हुए। समस्त जीवों के कर्म का लेखा-जोखा रखना ही तुम्हारा दायित्व है। बाद में चलकर बालक जब यौवन की दहलीज पर पहुंचा तो इरावती एवं शोभावती नामक कन्याओं से विवाह हुआ। प्रथम पत्नी से चार एवं द्वितीय से आठ पुत्र उत्पन्न हुए। इन पुत्रों का नामकरण इनके शासित प्रदेश के आधार पर श्रीवास्तव, सूरध्वज, निगम, कर्ण, कुलश्रेष्ठ, माथुर, सक्सेना, गौड़, अस्थाना एवं वाल्मिकी आदि किया गया। आज भी कायस्थ वंश की उपजातियां इन्हीं नामों से अपनी पहचान कायम रखे हैं। कलिकाल में उनकी वंशज आज भी धर्म, राजनीति, प्रशासन, विज्ञान, समाजसेवा, दर्शन, राष्ट्र रक्षा आदि क्षेत्रों में सक्रिय दायित्व संभाले हुए है।