श्रद्धा से पूजे गये नागदेवता, चढ़ा दूध-लावा
मऊ : जनपद के सभी गांव-नगर शुक्रवार को आस्था के ज्वार में डूबे नजर आए, होते भी क्यों नहीं, भारतीय संस्कृति में प्रकृति के विषधरों की आराधना का महापर्व नागपंचमी जो थी। श्रावण शुक्ल पंचमी शुक्रवार को प्रकृति की उपासक भारतीय सनातन परंपरा के धर्मावलंबी प्रात:काल से देर रात तक देवालयों में दर्शन-पूजन के लिए जुटे। लोगों ने घरों में दूध-लावा अर्पित कर नागदेवता की आराधना की तो अखाड़े कुश्ती दंगल, कबड्डी, चिकई, उड्ढा (लंबी कूद) व ऊंची कूद आदि पारंपरिक शारीरिक खेलों से गुलजार रहे। झूलों पर पेंग भरती युवतियों ने कजरी गाकर सावन का आनंद लिया तो बच्चे भी झूला झूलने में पीछे नहीं रहे। महिलाओं ने हाथों में मेंहदी व पांवों में महावर रचाई और सोलह श्रृंगार किए। कई स्थानों पर मेलों का आयोजन भी किया गया।
भगवान शंकर के कंठहार व विष्णु की शेषशैय्या के रूप में प्रतिष्ठापित नाग देवता की तस्वीरें लोगों ने दरवाजों पर चिपकाए। उन्हें धान का लावा व दूध चढ़ाया और पूजन किया। घर को चारों ओर गोबर की रेखा से घेरकर निष्कंटक जीवन की कामना की गई। शिवालयों व अन्य देवालयों में भी सवेरे से ही लोगों की कतार लगी रही। घरों की रसोइयों से पकवानों की महमह महक नथुनों में समा रही थी। लोगों ने लजीज व्यंजनों का लुत्फ उठाया। साथ ही अखाड़ों में दंगल व प्राचीन खेलों का आनंद लिया। पुराने लड़वइयों ने भी शरीर पर मिंट्टी पोतकर ताल ठोंके। मलखंभ भांजने की होड़, चिकई, कबड्डी समेत अन्य खेल लोगों के आकर्षण का केंद्र रहे।
प्राचीन काल की तरह नागपंचमी पर शास्त्रार्थ की परंपरा का पालन अब कहीं नहीं दिखा। बावजूद इसके नगर से लेकर ग्रमाीण अंचलों तक में पर्व को लेकर चहल-पहल रही।
बोझी प्रतिनिधि के अनुसार नागपंचमी पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। घरों व मंदिरों में नाग देवता की पूजा के साथ ही खेलों का आयोजन किया गया।
हाथों में सजी मेंहदी, पड़े झूले
नागपंचमी का पर्व महिलाओं खासकर युवतियों व बच्चों के लिए खास रहा। उन्होंने खूब सज-संवर कर पूजन अर्चन किया। साथ ही सखियों संग झूले पर पींगे भी मारीं। नए वस्त्र, चूड़ियों से भरी पूरी कलाई व हथेली पर सजी विभिन्न कलात्मक डिजाइनें। साज श्रृंगार की होड़ भी बेजोड़ रही। बच्चे भी पीछे नहीं रहे।