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सब जीतत बा अबहींन

By Edited By: Published: Fri, 09 May 2014 09:00 PM (IST)Updated: Fri, 09 May 2014 09:00 PM (IST)
सब जीतत बा अबहींन

घोसी (मऊ) : चट्टी हो या चौराहा, परिचित हो या मित्र या फिर अपरिचित। जहां दो-चार लोग एकत्रित हुए हाल-चाल बाद में पहले 'का हो के जीतत बा इ लोकसभा चुनाव' पहला सवाल यही हो रहा है। यदि सभी लोग सामान्य मतदाता हैं तो किसी निर्णय पर पहुंचने में वक्त लगेगा। 'देखा के जीतेला, अबहींन त सब जीतत बा, कुछ लोग उनके वोट देत हवं त कुछ लोग ओहर जात बाटें। सबकर नजर त अपनिए जात बिरादरी आ पार्टी पर लगल बा। कुछ लोग हवा क रुख देखत हवें। बाकी अंत में का होई कुछ कहल ना जा सकत ह।' इनमें यदि कोई किसी पार्टी या प्रत्याशी का समर्थक है तो बातचीत का अंदाज बहस में तब्दील होते देर नहीं। तब बातचीत के दौरान वह जातिवार और हवा या लहर सहित अल्पसंख्यक वर्ग के एक खास पार्टी के विरोध में एकजुट होकर एक विशेष पार्टी की तरफ झुकाव का दावा करता है। यहां तक कि अल्पसंख्यक समुदाय कल क्या करेगा, यह भी उसे पता है। तपाक से अगला तर्क कि अल्पसंख्यक वर्ग इस पार्टी को पसंद नहीं करता है। ऐसे में हमारी पार्टी में आ जाएगा। यह अलग बात है कि तर्क के दौरान प्रस्तुत आंकड़ों की न कोई सत्यता ना प्रामाणिक रिकार्ड। बस कयास। अलबत्ता आम मतदाता लहर और मुद्दा के बीच पार्टी और प्रत्याशी दोनों का विश्लेषण कर मतदान करने की बात कहता है।


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