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प्रसाद के'छोटा जादूगरों' की भूख से लड़ाई

योगेश जादौन, मथुरा: हम में से तमाम ने जयशंकर प्रसाद की मशहूर कहानी छोटा जादूगर पढ़ी ह

By JagranEdited By: Published: Sat, 13 Jan 2018 10:59 PM (IST)Updated: Sat, 13 Jan 2018 10:59 PM (IST)
प्रसाद के'छोटा जादूगरों' की भूख से लड़ाई
प्रसाद के'छोटा जादूगरों' की भूख से लड़ाई

योगेश जादौन, मथुरा: हम में से तमाम ने जयशंकर प्रसाद की मशहूर कहानी छोटा जादूगर पढ़ी होगी। भूख और बीमारी से लड़ती मां को बचाने के लिए एक छोटे से बच्चे के संघर्ष की कहानी। ऐसे तमाम छोटा जादूगर आज भी भूख और भय की लड़ाई से जूझ रहे हैं। शहर की झुग्गी बस्ती के इन बच्चों ने न तो कभी स्कूल देखा और न ही कभी भरपेट खाया। खुद काम करते हैं और परिवार चलाने को हाड़तोड़ मेहनत।

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एदमाद ¨सह के हाथ आज बेहद तेजी से चल रहे हैं। उसे काम निपटाकर घर जाने की जल्दी है। इस जल्दी में कभी-कभी घबराहट भी उसके चेहरे पर आ जाती है जिसे वह फीकी हंसी हंस दूरकर देना चाहता है। बात टालने के लिए वह बेबात ही बोल उठता है, आज बहुत ठंड है, मगर इस ठंड की उसे ¨चता नहीं। बारह साल का है एदमाद ¨सह, लोगों के जूतों पर पॉलिस करता है लेकिन बातें बुजुर्गों की तरह करता है। आज उसे याद भी नहीं कि पिता का साया उसके सिर से कब उठा। उसे याद है तो सिर्फ एक बात कि किसी तरह शाम तक इतना कमाकर ले जाए कि अपनी बीमार मां की दवा और खाने का इंतजाम कर सके। ठिकाने के नाम पर नरसीपुरम में उसकी छोटी सी झुग्गी है जिसमें दिनभर बीमार मां रहती है। एदमाद ¨सह को इस नाजुक उम्र में काम क्यों करना पड़ता है। इस सभ्रांत सवाल का जवाब भी उसके पास है। वह कहता है कि मेरी उम्र करीब पांच साल की होगी जब भूख से तड़पकर बहन ने जान दे दी थी। उस बात को वह आज तक नहीं भूला। तब वह लोग एत्मादपुर रहते थे। पिता पहले ही खत्म हो चुके थे, ऐसे में मां ने मथुरा का रूख किया। मां जब तक ठीक रही घरों में काम कर गुजारा चलता रहा। अब वह अक्सर बीमार रहती है, ऐसे में जिम्मेदारी उसके ही कंधों पर है।

मसानी चौराहा स्थित सरस्वती मार्ग पर प्लास्टिक की तिरपाल लगाकर रह रहे 15 वर्षीय रामू की कहानी तो और भी हैरान कर देने वाली है। भरतपुर निवासी रामू की उम्र करीब 11 साल की होगी जब मां-बाप का साया सिर से उठ गया। रह गई तो सात साल की रीमा, पांच की राखी और सबसे छोटी दो वर्ष की लाजो। कुछ समय मौसा-मौसी ने अपने पास रखा और एक दिन वह भी अपने बच्चों के साथ बिना बताए कहीं चले गए। भूख और बदहाली से बेहाल रामू की इतनी उम्र भी नहीं थी कि वह समझ सके कि आखिर उसके साथ हुआ क्या है। भूखों मरने की कगार पर आ गए तो भीख मांगने लगे। किसी ने धार्मिक नगरी मथुरा चले जाने को कहा। रामू तीनों बहनों को लेकर तीन साल पहले मथुरा आ गया। आज उसकी उम्र 15 साल औ सबसे छोटी बहन की उम्र पांच साल है। उस पर किसी को कोई तरस नहीं आता। वह अपनी बहनों को पढ़ाना चाहता है लेकिन फिलहाल तो उसके आगे भूख मुंह बाए खड़ी है।


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