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शिखा का लक्ष्य 75 बच्चों को शिखर पर पहुंचाना

जागरण संवाददाता, मथुरा : गरीब बच्चों को सड़क पर घूमते देखती तो शिखा का मन निराश हो जाता

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Sep 2017 12:00 AM (IST)Updated: Sun, 24 Sep 2017 12:00 AM (IST)
शिखा का लक्ष्य 75 बच्चों को शिखर पर पहुंचाना
शिखा का लक्ष्य 75 बच्चों को शिखर पर पहुंचाना

जागरण संवाददाता, मथुरा : गरीब बच्चों को सड़क पर घूमते देखती तो शिखा का मन निराश हो जाता। मन में विचार उठते कि इनका विकास कैसे किया जाए। विकास करने के लिए पढ़ना-लिखना आना चाहिए। शिखा ने इस वर्ष करीब 75 बच्चे एकत्रित किए हैं और उनको पढ़ाना शुरू कर दिया है। अगले सत्र में सिखा बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलाना चाहती है। शिखा जितना कमाती है, इन बच्चों पर ही खर्च हो जाता है। शिखा के इस कार्य में शुरू में माता-पिता ने विरोध किया, लेकिन उसके इरादे बदल नहीं सके। बाद में परिवार वाले भी उसकी इस नेक मुहिम में सहयोग करने लगे।

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गुरुनानक नगर निवासी शिखा बंसल ने बीएड 2015 में कर लिया। मन में बच्चों के लिए कुछ करने की तमन्ना जागृत हुई। बच्चों को खुश करने के लिए अपना जन्मदिन भी गरीब बच्चों के मध्य मनाने लगी। इसके बाद भी निशा का मन नहीं भरा, वह इन बच्चों को समाज में स्थापित करने की सोचने लगी। फिर बच्चों को पढ़ाने की ठान ली। जब अपने मन की बात परिवार को बताई तो उन्होंने विरोध किया। माता-पिता ने शिखा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, लेकिन शिखा की जिद के आगे उनके तेवर ढीेले पड़़ गए। 2017 में गलियों में घूमने वाले बच्चों को पढ़ाने का इरादा कर लिया। इस मुहिम में उसने अपनी सहेली अंकिता और भाई पीयूष को शामिल कर लिया। इसके बाद बच्चों को ढूंढ़ना शुरू किया। शिखा ने ट्रांसपोर्ट नगर और इसके पास-पास के स्कूल न जाने वाले करीब पांच दर्जन बच्चे ढूंढ़ लिए। इसके बाद जुलाई से ट्रांसपोर्ट नगर में खुले मैदान में ही पढ़ाना शुरू कर दिया। उसकी इस मुहिम में अब सात लोग जुड़ गए। अगला कदम नये सत्र में बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलाना है। शिखा एक प्राइवेट जॉब करती है। वह जितनी आय होती है, उसका अधिकांश हिस्सा इन बच्चों को कॉपी, पेंसिल, रबड़ आदि दिलाने पर ही खर्च हो जाता है। यहां तक की वह इन बच्चों के लिए कपड़े आदि का प्रबंध भी करती है। शिखा कहती है कि इस मुहिम को आगे बढ़ाना ही उसका उद्देश्य है। शादी भी इसी शर्त पर करेंगी कि उनके पति को समाज सेवा के इस कार्य से दिक्कत न दें और उसका सहयोग करे। उनके पास 6 से 11 वर्ष तक के बच्चे हैं जो बिल्कुल भी पढ़ना नहीं जानते है। वह चाहती है कि स्कूल जाने से पहले यह पढ़ना सिख जाएं।


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