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श्रद्धा से सहेजे जा रहे शिलालेख

जागरण संवाददाता, वृंदावन (मथुरा): यह वृंदावन की रियासतकालीन प्रतिष्ठा का प्रतीक है कि यहां देश के वि

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Apr 2017 11:35 PM (IST)Updated: Sat, 22 Apr 2017 11:35 PM (IST)
श्रद्धा से सहेजे जा रहे शिलालेख
श्रद्धा से सहेजे जा रहे शिलालेख

जागरण संवाददाता, वृंदावन (मथुरा): यह वृंदावन की रियासतकालीन प्रतिष्ठा का प्रतीक है कि यहां देश के विभिन्न अंचलों से जुड़े राजा-महाराजाओं, धनिक और सेठ-साहूकारों ने मंदिर, घाट व कुंज बनाए। इनमें उन्होंने शिलालेख भी अंकित किए। जो इतिहास की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण हैं। बदले परिवेश में शिलालेखों की यह परंपरा अब भी अनवरत जारी है।

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वृंदावन के विभिन्न मंदिर-देवालयों में यह शिलालेख सुदूर अंचलों के तीर्थयात्री आज भी इस आशय के साथ लगाते हैं कि उनके माता-पिता व पूर्वज वृंदावन में विद्यमान रहकर प्रभु का सान्निध्य प्राप्त कर सकें। शिलालेखों की ये परंपरा 16वीं सदी से 21 वीं सदी तक जारी है।

वृंदावन की पवित्र भूमि सिर्फ मंदिर और उत्सवों के रूप में आस्था का सैलाब ही नहीं, बहुत कुछ है। श्रद्धा के धरातल पर यहां संस्कृति की विविधताएं देखने लायक हैं। सिर्फ भक्ति ही नहीं, इतिहास के संदर्भ भी श्रद्धा के इस मंच पर अपनी गाथा कह रहे हैं। हर युग में वृंदावन के प्रति आकर्षण ने इसे एक नई पहिचान दी, जिसका मुख्य आधार श्रीमद्भागवत का वो संदर्भ माना जा सकता है, जिसमें उल्लिखित है कि भक्ति भी यहां आकर नव चेतना को प्राप्त हुई थी। 'धन्यं वृन्दावनं तेन भक्तिर्नृत्यति यत्र च' जिसके चलते कालांतर में यह मान्यता बनी कि वृंदावन में रहकर ही मुक्ति संभव है। इसी मान्यता से प्रभावित यह भाव यहां आज भी देखा जा सकता है। इसका प्रमाण है कि वे शिलालेख जिनकी परंपरा यहां पिछले 500 सालों से जारी है। इसी के साथ यहां मंदिर, घाट, कुंज आदि के शिलालेखों का भी अपना महत्व है।

भाव से संरक्षित हुई इतिहास की कड़ियां

वृंदावन के शिलालेख पुस्तक के लेखक डॉ. राजेश शर्मा का कहना है कि वृंदावन वास की पुरानी स्मृतियां यहां समाधि स्मारकों के रूप में हैं, जिन पर शिलालेख भी है। पूर्व में जगह आसानी से उपलब्ध थी तो स्मारक बनते थे, जिनमें शिलालेख भी लगे हैं। आज लोग केवल शिलालेख बनवा कर उन्हें भक्ति भाव से पारंपरिक स्थानों की दीवारों पर इसी भावना से लगा रहे हैं कि उनके परिजन वृंदावन में प्रभु के सानिध्य में बने रहें।

आज दीवारों पर लगते हैं शिलालेख

बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उड़ीसा व अन्य राज्यों के श्रद्धालु आज भी पूर्वजों की स्मृति के रूप में यहां शिलालेख लगवाते हैं, जो वृंदावन के प्रति श्रद्धा का अनूठा उदाहरण है। यही कारण है कि वृंदावन में शिलालेख तैयार करने का कार्य बड़े पैमाने पर है।


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