जर्जर काया करती गुहार, अब पहुंचा दो घर के द्वार
रैना पालीवाल, मथुरा: उम्र के आखिरी पड़ाव पर काया जर्जर हो गई। हाथ-पांव से लाचार हो गए, आंखें धुंधला ग
रैना पालीवाल, मथुरा: उम्र के आखिरी पड़ाव पर काया जर्जर हो गई। हाथ-पांव से लाचार हो गए, आंखें धुंधला गईं। रिहाई के नाम पर फफक पड़ते हैं। सांस टूटने को है, पर उम्मीदों की डोर अब भी जुड़ी है। बस बार-बार गुहार करते रहते हैं कि अपने आंगन में पहुंचा दो, ताकि जाते-जाते अपनों से मन की कह सकें। प्रदेश सरकार ने करीब एक साल पहले बुजुर्ग कैदियों की रिहाई के लिए सर्कुलर जारी किया था, लेकिन वो फाइल में ही दब कर रह गया।
जिला जेल में 22 बुजुर्ग कैदी हैं। इनमें से दो-तीन की उम्र 90 पार है। इनमें से 80 वर्ष से अधिक उम्र के करीब 10 कैदी हैं। 92 साल के दीपचंद से जब उनके बेटे श्रीचंद (62) मिलने आते हैं, तो बैरक से खुद उनको लेकर बाहर आते हैं। महराना कांड के ये दोषी 2011 से आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। दीपचंद सुन नहीं पाते। श्रीचंद कहते हैं-मेरी जान कू लाश हैं ये। दिल के मरीज हैं। रात-रात भर रोमैं हैं। कहमैं, 60 साल खेतन मै हल चलायौ है। कहमै कहां लाकै गेर दियो। जे तौ जेल की मेहरबानी है कि जे जी रहे हैं।
2007 से आजीवन कारावास की सजा काट रहे 80 वर्षीय चरण ¨सह को जेल में दो बार हार्ट अटैक हो चुका है। घर के नाम पर आंखें बरसने लगती हैं। केहरी नगला, गोवर्धन निवासी चरण कहते हैं- न कछु दीखै ना सुनै। सांस कब टूट जावै, का पतौ। हो सकै तौ घर भिजवाय देओ। गरीब आदमी हैं, हमाये बसकौ नाय।
70 वर्षीय मुन्नी को देखकर अन्य कैदियों को भी वेदना होती है। ढांचा भर रह गईं मुन्नी चलने फिरने में असमर्थ है। बाढ़पुरा, मथुरा की यह वृद्धा दहेज के केस में 10 साल की सजा काट रही है। अभी उनकी सजा को चार साल हुए हैं।
उम्मीद पर ही ¨जदा हैं
आजीवन कारावास में 17 साल की सजा काट चुके कालीचरण और उनके भाई रमन उम्मीद पर ही ¨जदा हैं। उनके लिए फार्म-ए भरा गया, जो निरस्त हो गया। उसके बाद दोनों ने दया याचिका दी, वो भी खारिज हो गई। कृष्णापुरी निवासी कालीचरण बात करते-करते रोने लगते हैं। उनका भरा-पूरा परिवार है। पत्नी बीमार रहती है। उम्मीद पर ¨जदा हैं। शायद दूसरी सरकार में हमारी सुन ली जाए। दोनों भाई एक ही बैरक में हैं।
जेल अधीक्षक पीडी सलोनिया ने बताया कि 14 साल की सजा काट चुके कैदी रिहाई के लिए फार्म-ए भर सकते हैं। इन लोगों का भी भरा गया था, पर पें¨डग पड़ा है। इनकी दया याचिका खारिज हो चुकी हैं।
निरस्त हो गए सभी प्रस्ताव
जेलर पीएस शुक्ला ने बताया कि करीब एक साल पहले शासन स्तर से एक सर्कुलर आया था जिसमें बुजुर्ग कैदियों की रिहाई के लिए प्रस्ताव भेजने को कहा गया था। यहां से हमने 10-12 प्रस्ताव भेजे थे, लेकिन सब रिफ्यूज हो गए। डीएम, एसपी की संस्तुति के बाद भी मुन्नी की रिहाई का आदेश नहीं आया।
कानूनविद् अजय पांडे बताते हैं कि सर्कुलर में लिखा गया था कि 70 वर्ष के बुजुर्ग जो आधी या एक तिहाई सजा काट चुके हैं, उन्हें रिहा किया जा सकता है। 60 साल की महिला जो अनफिट है, उसको भी छोड़ा जा सकता है। हालांकि यूपी में किसी को नहीं छोड़ा गया।
तीन बुजुर्गों की हो चुकी मौत
जिला जेल में जून से लेकर अब तक तीन बुजुर्गों की मौत हो चुकी है। इनकी उम्र 75-76 साल थी। जवाहरबाग के दोषी इन तीनों वृद्धों की मौत हार्ट अटैक से हुई थी।
जेल में क्षमता से तीन गुना कैदी
जेलों में कैदियों को रखने की जगह तक नहीं है। हालत यह है कि यहां क्षमता से तीन गुना अधिक कैदी हैं। इनके मानवाधिकारों की फिक्र करने वाला कोई नहीं है। जिला जेल की क्षमता 554 कैदियों को रखने की है लेकिन यहां वर्तमान में 1702 कैदी हैं। यहां 18 बैरकें हैं। एक बैरक में 60 कैदियों के रहने की क्षमता है, जबकि 120-140 कैदी भरे पड़े हैं।
जेलर कहते हैं कि इसके लिए कई बार शासन को लिखा गया लेकिन कुछ नहीं हुआ। संसाधनों की कमी है। नई जेल नहीं बन रही, कैदी बढ़ते जा रहे। हम लोग क्या कर सकते हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ता आगरा निवासी नरेश पारस ने गत सितंबर में मथुरा की जिला जेल का दौरा किया था। उन्होंने बताया कि यह स्थिति यूपी की सभी जेलों की है। इससे बड़ा मानवाधिकारों का हनन और क्या होगा। कैदियों को भी आम लोगों की तरह स्पेस चाहिए। उन्हें भुस की तरह नहीं भरा जा सकता।
इसके लिए हमने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को कई बार लिखा है। वहां से सरकार को नोटिस जारी किया जाता है। सरकार लिखकर भेज देती है कि संसाधन सीमित हैं। जेल की स्थिति आप इससे समझ सकते हैं कि यूपी की जेलों में 26 घंटे में एक कैदी की मौत होती है। बहुत सारे विचाराधीन कैदियों की जेल में मौत हो चुकी है। सबसे बड़ी दिक्कत है कि न्यायालय में कई सारे केस पें¨डग पड़े हैं। उनका निस्तारण नहीं हो पा रहा है।