जयगुरुदेव साम्राज्य में गहराई सत्ता संघर्ष की आशंका
जागरण संवाददाता, मथुरा: लखनऊ में चल रहे सपा के सत्ता संग्राम के बाद जयगुरुदेव के अनुयाइयों की नजरें
जागरण संवाददाता, मथुरा: लखनऊ में चल रहे सपा के सत्ता संग्राम के बाद जयगुरुदेव के अनुयाइयों की नजरें भी टिकी हैं। दोनों पक्षों में जय गुरुदेव की सत्ता हासिल करने को संघर्ष का एक और दौर हो सकता है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को मंत्री पद से बर्खास्त किए जाने के बाद अब संस्था का दूसरा गुट सक्रिय हो गया है।
चार साल पहले बाबा जयगुरु के महाप्रयाण के दिन से ही संस्था की अकूत संपत्ति चर्चा में रही है। दो गुटों में से एक गुट की पूर्व मंत्री से नजदीकी थी। सत्ता की हनक के चलते दूसरा गुट चुपचाप बाहर हो गया था। विरोधी गुट कहता रहा कि बाबा जयगुरुदेव दस हजार करोड़ से ज्यादा की चल-अचल संपत्ति छोड़ गए थे, जिसमें कैश और कई ¨क्वटल सोना-चांदी और हीरा-जवाहरात हैं। आरोप था कि उनके महाप्रयाण के तत्काल बाद ही गायब कर दिए थे। कई अनुयायी इस संपत्ति को खुर्द-बुर्द किए जाने के खिलाफ अभी भी अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं।
जयगुरुदेव भक्तों की मानें तो स्वामी महाराज ने अपने जीवित रहते नामयोग साधना मंदिर के गुंबद का कलश सोने का बनवाया, जिसमें एक ¨क्वटल सोना लगा था। वह वर्तमान हॉल के पीछे इससे भी बड़ा एक हॉल बनाने की मंशा रखते थे और तीन गुबंद सोने के बनवाना चाहते थे, लेकिन उनके जाते ही सारा सोना यहां से सत्ता की नजदीकी वाले जिले में भिजवा दिया। इस मामले में उत्तराधिकार के फर्जी कागजात तैयार करने और दो सौ करोड़ की लूट करने का एक मुकदमा भी दर्ज कराया था, जिस पर सत्ता के दबाव में दो बार अंतिम रिपोर्ट लगवा दी गयी, लेकिन अब हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि यदि सत्ता में पूर्व मंत्री कमजोर होते हैं, तो इसका फायदा विरोधी पक्ष को होगा।
हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले शैलेंद्र ¨सह चौहान कहते हैं कि स्वामी महाराज ने गरीबों से एक-एक रुपया दान लेकर पैसा मंदिर के लिए एकत्र किया था। उनके अंतिम संस्कार के दिन ही तीन फुट की चार सौ गुल्लक रुपयों से भर गयी थीं, वे भी गायब कर दीं। देर-सबेर स्वामी महाराज के अनुयाइयों को न्याय जरूर मिलेगा।
जवाहर बाग के पीछे आया था रामगोपाल का नाम: जवाहर बाग में अवैध कब्जेदार रामवृक्ष यादव को लेकर सैफई परिवार के दूसरे नेता भी आरोपों के घेरे में आए थे। जवाहरबाग कांड के बाद यह सामने आया था कि रामवृक्ष के उनसे नजदीकी संबंध थे और उनके बेटे का लोकसभा चुनाव में प्रचार किया था। वहीं पिछले महीनों वृंदावन में भजन कुटी पर कब्जे को लेकर भी उन पर आरोप सामने आए थे।