बिहारी जी की मंगला आरती दर्शन को उमड़ी भीड़
जागरण संवाददाता, वृंदावन (मथुरा): सजल नेत्र, सिर पर फेंटा, पीतांबर, हीरे-मोती और माणिक्य का श्रृंगार
जागरण संवाददाता, वृंदावन (मथुरा): सजल नेत्र, सिर पर फेंटा, पीतांबर, हीरे-मोती और माणिक्य का श्रृंगार। स्वर्ण-रजत ¨सहासन। चारों ओर धवल रजत थालों में सजे छप्पन व्यंजन और बीच स्वर्ण-रजत दमकती आरती हाथ में उठाई, तो भक्तों के उल्लास का कोई भी ठिकाना न रहा। हर कोई इस विलक्षण पल का अपलक दर्शन करने को जद्दोजहद करता नजर आया।
जो जहां था, वहां से तिल भर भी हटने को जगह नहीं। जो पीछे थे, वे आगे बढ़ने की कोशिश में थे, तो आगे वाले खुद को संभालने की जद्दोजहद में थे। कुछ भक्त ऐसे ही खड़े-खड़े अपलक अपने आराध्य को निहारने में मस्त, उन्हें ये भी आभास न हुआ कि कब वे पीछे से आगे पहुंच गए और कब आगे से पीछे। उनके हृदय में तो बस ठा. बांकेबिहारी और उनकी मंगला आरती का दर्शन ही बसा था। हालात ये कि व्यवस्था संभालने में सुरक्षाकर्मी भी हिम्मत हार गए। झोटे ले रही भक्तों की भीड़ में कई श्रद्धालुओं का तो दम घुटने लगा।
हालात ये कि जो अंदर था, वह बाहर निकल नहीं सकता और बाहर खड़े भक्त बिहारीजी की एक झलक पाने को उनसे ही विनती करते जमीन पर बैठ गए और उनकी आंखों से आंसू छलक आए। मीलों दूर मंगला आरती की एक झलक पाने को रात भर तपस्या की, मगर आरती के दर्शन नसीब न हुए। बहरहाल, आरती के बाद ही दर्शन कर उन्होंने सब्र कर लिया।
तय समय 1.45 बजे ठा. बांकेबिहारी के पट खुले तो 36 साल बाद ठाकुरजी के छप्पनभोग के दर्शन कर श्रद्धालु गदगद हो उठे। स्वर्ण-रजत की छटाओं से दमकता बांकेबिहारी मंदिर का जगमोहन भक्तों का मन मोह रहा था। आरती के बाद एक बार फिर पर्दा डाल दिया गया, मगर कुछ ही मिनटों पर फिर से ठा. बांकेबिहारीजी ने भक्तों को दर्शन दिए। सुबह 5.30 बजे तक दर्शनों का सिलसिला चलता रहा।