500 साल पहले वृंदावन आए थे भगवान जगन्नाथ
जागरण संवाददाता, मथुरा (वृंदावन): भगवान जगन्नाथ के श्रीविग्रह को पांच सौ साल पहले पुरी के जगन्नाथ मं
जागरण संवाददाता, मथुरा (वृंदावन): भगवान जगन्नाथ के श्रीविग्रह को पांच सौ साल पहले पुरी के जगन्नाथ मंदिर से लाकर एक संत ने यहां स्थापित किया था। श्रीविग्रह को वृंदावन लाने का आदेश भी भगवान ने खुद उन्हें दर्शन देकर दिया था। तभी से यमुना तट पर बने इस विशाल जगन्नाथ मंदिर में भगवान के श्रीविग्रह की विधिविधान पूर्वक सेवा होती रही है।
मंदिर के महंत स्वामी ज्ञानप्रकाश पुरी ने बताया कि पांच सौ साल पहले पंजाब के फरीदकोट निवासी वैष्णव भक्त जिनका नाम हरिदास था, वह वृंदावन में यमुना तट के इसी स्थान पर जहां आज मंदिर है, ईश्वर साधना करने लगे। संत हरिदास के भजनों में अलौकिक प्रेम का भाव था। उनके सोते-जागते, उठते-बैठते विरह के आंसू बहा करते थे। निरंतर कीर्तन, भगवत प्रार्थना और स्मरण में अपने हृदय में विरह और दीनता के सागर में डूबे रहते। संत हरिदास के प्रेम और करुणा ने भगवान को भी द्रवित कर दिया। भगवान ने उन्हें दर्शन दिए, तो संत की अश्रु धारा बह उठी और वह अचेत होने लगे। भगवान के रूप-रस में निमग्न संत हरिदास को भगवान खुद ही होश में लाए, तो संत ने अपना सिर भगवान के चरणों में रख दिया। संत को भगवान ने आदेश दिया कि तुम जगन्नाथ पुरी जाओ, इस साल आषाढ़ में वहां
श्रीविग्रह परिवर्तन होगा। वहां से परिवर्तित होने वाले पहले श्रीविग्रह को तुम अपने साथ लाकर वृंदावन में इसी स्थान पर स्थापित कर दो। भगवान के आदेश का पालन करते हुए अपने शिष्यों के साथ संत हरिदास कीर्तन करते हुए चार महीने पैदल चलने के बाद जगन्नाथ पुरी पहुंचे। जगन्नाथ पुरी में उन दिनों रथयात्रा की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं, संत हरिदास ने पुरी के महाराजा प्रताप रुद्र को भगवान के आदेश की जानकारी दी, मगर राजा ने उनकी बात सुने बिना श्रीविग्रह समुद्र में प्रवाहित कर दिए। यह देख संत हरिदास ने अन्न-जल छोड़ समुद्र किनारे डेरा डाल दिया और भगवान की उसी छवि का ध्यान करने लगे। आधी रात में राजा प्रताप रुद्र को भगवान ने स्वप्न दिया और राजा को गलती का अहसास करवाते हुए संत से क्षमा मांगने और उनकी आज्ञा का पालन करने का आदेश दिया। तब भगवान के आदेश पर राजा ने संत हरिदास को पुरी के प्रथम श्रीविग्रह प्रदान किए और अपनी सेना के साथ उन्हें वृंदावन भेजा।
पुरी से जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्र व सुदर्शन जी का श्रीविग्रह लाकर संत हरिदास ने उसी स्थान पर स्थापित किया, जहां आज जगन्नाथ मंदिर है। इसके बाद मंदिर का दायरा बढ़ता गया। चार दशक पूर्व मंदिर के तत्कालीन महंत ईश्वरपुरी महाराज ने इसे विशाल आकार दिया। आज भी दुनिया भर के अनेक देशों से हजारों श्रद्धालु जगन्नाथजी के दर्शन को आश्रम पहुंचते हैं।
36 साल में बदलते हैं पुरी में श्रीविग्रह
जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ के श्रीविग्रह का योग 36 साल बाद आता है। जिस साल में दो आषाढ़ पड़ते हैं, उसी साल रथयात्रा महोत्सव के दौरान श्रीविग्रह बदले जाते हैं।