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ब्रज की याद में द्रवित हैं भगवान के स्वरूप

जागरण संवादादाता, मथुरा (वृंदावन): भगवान जगन्नाथ का स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण का ही द्रवित रूप है। ये स

By Edited By: Published: Sun, 26 Jun 2016 12:07 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jun 2016 12:07 AM (IST)
ब्रज की याद में द्रवित हैं भगवान के स्वरूप

जागरण संवादादाता, मथुरा (वृंदावन): भगवान जगन्नाथ का स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण का ही द्रवित रूप है। ये स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारिका में मां रोहिणी से ब्रज की कथा सुनने के बाद धारण किया था। देवर्षि नारद की साधना से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने कलियुग में उनके इस रूप के दर्शन से ही लोक कल्याण का वरदान दिया था। आज भी जगन्नाथ पुरी में इसी रूप में विराजमान होकर भगवान अपने भक्तों का कल्याण कर रहे हैं।

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जगन्नाथ मंदिर के महंत स्वामी ज्ञानप्रकाश पुरी स्कंध पुराण का हवाला देते हुए बताते हैं कि पुराण में इस कथा का उल्लेख है। द्वारिका में रहकर भगवान श्रीकृष्ण ब्रज को नहीं भूले और उन्होंने श्रीराधाजी को हमेशा अपने हृदय में बसाकर रखा। द्वारिका में भगवान श्रीकृष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ विवाह हुए, बावजूद इसके वह ब्रज और राधारानी को नहीं भूले। हर समय उनके मुख से श्रीराधे ही निकला। यहां तक कि शयन करने जाते, तब श्री राधे ही बोलते। इस बात को सुनकर रुक्मिणी समेत जो पटरानियां थीं, उन्हें बुरा लगा। वे आपस में बातें करतीं कि हम द्वारिकाधीश की इतनी सेवा करते हैं, मगर वे याद श्रीराधा को ही करते हैं। श्रीराधाजी के बारे में जानने पटरानियां मां देवकी के पास गईं, मगर उन्होंने इस दौर में जेल में होने का हवाला देकर मां रोहिणी जो वासुदेव की पहली पत्नी थीं, उनसे जानकारी करने की बात कह दी।

पटरानियां मां रोहिणी के पास गईं, तो उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के बाहर जाने पर ही कथा सुनाने का भरोसा दिया। भगवान बाहर गए, तो पटरानियों ने कथा सुनाने का आग्रह किया। इसकी जिम्मेदारी श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा को जिम्मेदारी दी गई कि वह दरवाजे पर खड़े होकर देखें, कहीं भगवान न आ जाएं। अगर आएं तो घंटी बजा दें, ताकि कथा को विश्राम दे दिया जाए। सुभद्रा कथा सुनने में इतनी तल्लीन हो गईं कि उन्हें सुधि ही नहीं रही। इधर, भगवान श्रीकृष्ण अपने भाई बलराम के साथ दरवाजे पर पहुंच गए और कथा सुनते ही आगे बढ़े। दरवाजे पर दोनों हाथ फैलाए बहन सुभद्रा का स्पर्श हुआ, तो वे द्रवित हो गईं और कृष्ण-बलराम द्वार पर रुक गए। उनका शरीर भी ब्रज के प्रेम में द्रवित होने लगा। नासिका, मुखारविंद बढ़ने लगे। ये देख देवता भी घबराए, अभी तो भगवान को अनेक लीलाएं करनी हैं।

देवताओं ने नारदजी को भेजा, नारदजी ने आकर भगवान के सामने नृत्य कर उनका ध्यान भंग किया। नारदजी की इसी साधना से प्रसन्न होकर भगवान ने अपने द्रवित रूप से कलियुग में लोक कल्याण का वरदान दिया।


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