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सांस्कृतिक कला का अनुपम सौंदर्य द्वारिकाधीश मंदिर

जागरण संवाददाता, मथुरा: राजाधिराज बाजार स्थित द्वारिकाधीश मंदिर अपने सांस्कृतिक वैभव कला और सौंदर्य

By Edited By: Published: Thu, 03 Sep 2015 11:49 PM (IST)Updated: Thu, 03 Sep 2015 11:49 PM (IST)
सांस्कृतिक कला का अनुपम सौंदर्य द्वारिकाधीश मंदिर

जागरण संवाददाता, मथुरा: राजाधिराज बाजार स्थित द्वारिकाधीश मंदिर अपने सांस्कृतिक वैभव कला और सौंदर्य के लिए अनुपम है। ग्वालियर राज के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुलदास पारीख ने सन् 1814-15 में इस मंदिर का निर्माण कराया था। इसके लिए एक काजी और एक चतुर्वेदी की जमीन ली गई, जिसके बदले काजी को जमीन के बराबर चांदी के सिक्के, मोती और चतुर्वेदी से झोली फैलाकर जमीन दान में मांगी थी।

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श्रीद्वारिकाधीश मंदिर का निर्माण कराने वाले गोकुलदास पारीख बड़ौदा राज्य के सीनौर गांव के रहने वाले थे। श्रीद्वारिकाधीश प्रभु के अनुग्रह से ही उन्हें ग्वालियर प्रवासकाल में स्वप्नदर्शन हुआ और अपार संपत्ति के साथ श्रीद्वारिकाधीश प्रभु राजाधिराज का देव विग्रह प्राप्त हुआ। वह इस विग्रह को लेकर मथुरा आ गए। पहले विग्रह को वृंदावन के भतोरपा बगीचा पर रखा गया। इसके बाद जूना मंदिर प्रयागघाट पर रखा गया। विग्रह के मंदिर के निर्माण के लिए मथुरा और वृंदावन के लोगों में जमकर बहस हुई। जिसके बाद लॉटरी के जरिए से मंदिर के मथुरा में बनने का निर्णय हुआ।

यमुना किनारे स्थान की तलाश तो पूरी हो गई लेकिन इस जमीन में कुछ भाग एक काजी और एक चतुर्वेदी की जमीन का था। काजी ने शर्त रखी जितनी जमीन चाहिए उस हिस्से पर चांदी के सिक्के रखने होंगे। सिक्के गोल होने के कारण सिक्कों के बीच की जगह खाली रह जाती। इस खाली स्थल में चांदी के मोती भरे गए। चतुर्वेदी ने शर्त रखी की सेठजी दान मांगे तो वह जमीन दे देंगे। इस पर सेठजी ने झोली फैलाकर दान मांगा। इसके बाद मंदिर का निर्माण 1814-15 में प्रारंभ हुआ। पारीख जी की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचंद ने मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण कराया। सन् 1873 में मंदिर की रजिस्ट्री कराई गई। यह मंदिर पुष्टमार्ग के आचार्य श्रीगिरधारीलाल महाराज कांकरोली वालों को भेंट किया गया।

मंदिर के पदाधिकारी श्रीधर चतुर्वेदी बताते हैं कि प्रतिवर्ष मंदिर में सोने चांदी के ¨हडोले, अन्नकूट, जन्माष्टमी, नंदोत्सव, दीपावली, होली आदि आयोजन श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र रहते हैं।

भक्ति भाव से ही आ सकती है शांति

द्वारिकाधीश मंदिर के पदाधिकारी श्रीधर चतुर्वेदी कहते हैं कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कर्म और शांति के मार्ग पर चलने का संदेश देती है। भक्ति मार्ग पर चलकर ही देश में फैल रहे आतंकवाद, अशांति को दूर किया जा सकता है। जन्माष्टमी संकल्प लेने का दिन हैं।

महाभिषेक के दर्शन से मिलते हैं हरि: कपिल

श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा कहते हैं कि भगवान जब अनेक अशेष गुणों को प्रकट करते हैं, तब वे पूर्णतम कहे जाते हैं। जब सब गुणों को प्रकट न करके बहुत से गुणों को प्रकट करते हैं तब पूर्णतर और जब उनसे भी कम गुणों को प्रकट करते हैं तो पूर्ण कहलाते हैं। आदि वाराह पुराण, पद्म पुराण, श्रीमद्भागवत आदि में स्पष्ट उल्लेख है कि भगवान के जन्म महोत्सव के दर्शन का पुण्य जो मथुरा में है, वह अन्यत्र कहीं नहीं हैं। चूंकि भगवान ने जन्म की लीला मथुरा में की हैं। भगवान के ऐसे दिव्य जन्म महाभिषेक के दर्शन करने मात्र से मनुष्य जन्म-मरण के चक्र से छूटकर साक्षात हरि को प्राप्त करता है।


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