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लोक संस्कृतियों को संजो रहा हुनर

जागरण संवाददाता, मथुरा (वृंदावन): आहट, कोई है, नीम का पेड़, मुक्ति और रहस्य समेत 14 टीवी सीरियलों के

By Edited By: Published: Wed, 29 Jul 2015 06:45 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2015 06:45 PM (IST)
लोक संस्कृतियों को संजो रहा हुनर

जागरण संवाददाता, मथुरा (वृंदावन): आहट, कोई है, नीम का पेड़, मुक्ति और रहस्य समेत 14 टीवी सीरियलों के पटकथा लेखक और आंचलिक तथा फिल्मों के लिए तकरीबन दो हजार गीतों की रचना कर चुके ब्रजेश चक्रवर्ती अब लोक संस्कृतियों को बढ़ावा देने में भी जुटे हैं। भारत सरकार द्वारा विदेशों में आयोजित भारत महोत्सव में अपनी रचना धर्मिता का लोहा मनवाने वाले श्री चक्रवर्ती इन दिनों यहां वृंदावन शोध संस्थान में ब्रज की लोक संस्कृति से जुड़ी कलाकृतियां बना रहे हैं। ये कलाकृतियां यहां वृंदावन शोध संस्थान की शोभा बढ़ाएंगी।

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बाल्यकाल में ही पिता की मृत्यु के बाद कक्षा दस तक ही शिक्षित तकरीबन 50 वर्षीय श्री चक्रवर्ती लगभग 15 साल से भारत के 28 राज्यों की लोक संस्कृतियों से जुड़ी कलाकृतियां बना रहे हैं। हॉरर फिल्मों के प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक रामसे ब्रदर्स के साथ अनेक टीवी सीरियलों की पटकथा लिखने वाले श्री चक्रवर्ती अभिनेता अर्जुन रामपाल अभिनीत फिल्म आरक्षण के लिए ऑयटम सांग-मैं हूं प्यासी जमीं, तू है बरसता सावन भी लिख चुके हैं। फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा, गोंविद नामदेव और मुकेश तिवारी के सहयोगी रहे ब्रजेश ने बुधवार को जागरण को बताया कि फिल्म और टीवी के लिए काम करने के संग-संग कलाकृतियों के जरिए लोक संस्कृतियों को बढ़ावा देने का कार्य आसान नहीं था। लेकिन उनको महसूस हुआ कि यदि इस दिशा में कार्य नहीं किया गया, तो युवा पीढ़ी अपनी पुरातन संस्कृति को जीवित नहीं रख सकेगी।

कुवैत और मास्को में कुछ साल पहले भारत महोत्सव में अपनी रचना धर्मिता से कई बड़ों को हैरत में डालने वाले श्री चक्रवर्ती ने बताया कि कुछ समय से वह देश के शोध संस्थानों से जुड़कर स्कूली बच्चों को मिट्टी आदि से मूर्तियां बनाना सिखा रहे हैं। इन दिनों वह वृंदावन शोध संस्थान में रासलीला, चरकुला, लठामार होली और मयूर नृत्य पर आधारित श्रीराधा-कृष्ण और उनकी सखियों की मूर्तियां गढ़ रहे हैं।

युवाओं की पसंद की बन रही फिल्में

द फिल्म राइटर्स मुंबई से जुड़े ब्रजेश चक्रवर्ती के अनुसार, ऐसा नहीं कि फिल्म नगरी में बेहतर कहानी लेखकों की कमी हो गई है। लेकिन ऐसे लेखकों को अब कम ही मौका मिल पाता है। युवाओं की पसंद की बन रही फिल्मों की कहानियां भी उसी हल्के-फुल्के अंदाज में लिखी जाती हैं।


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