वृंदा में मलेरिया जैसे रोगों से लड़ने की शक्ति
जागरण संवाददाता,मथुरा, वृंदावन: कभी वृंदावन के चारों ओर तुलसी (वृंदा) की पौध छाई रहती थी, लेकिन आधुन
जागरण संवाददाता,मथुरा, वृंदावन: कभी वृंदावन के चारों ओर तुलसी (वृंदा) की पौध छाई रहती थी, लेकिन आधुनिकता का प्रभाव कुछ इस कदर बढ़ा कि जंगल कटते चले गए और बगीचे उजड़ते चले गए। देखते ही देखते उजड़ गया तुलसी का वह वन, जिसके नाम पर वृंदावन का नामकरण हुआ था।
जी हां, धार्मिक नगरी का नाम वृंदावन रखने का सबसे बड़ा कारण यह भी है कि यहां चारों ओर तुलसी के वन ही हुआ करते थे। इसीलिए इस स्थान को वृंदावन कहा जाता है। समय के साथ समाज में आए बदलाव ने तुलसी को सिर्फ घर के गमलों तक ही सीमित कर दिया है। तुलसी जिसके बिना अब भी ठाकुरजी को प्रसाद अर्पित नहीं किया जाता। आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. श्रीकृष्ण शर्मा कहते हैं तुलसी में जटिल से जटिल बीमारियों को खत्म करने की शक्ति समाहित है, जिसका प्रयोग अगर दिनचर्या में व्यक्ति करे तो बीमारी उसके निकट भी नहीं भटक सकती। इसका उल्लेख आयुर्वेद में भी है। आयुर्वेद के जानकार वैद्य अपनी औषधियों में अधिकतर तुलसी का ही प्रयोग करते हैं। अब भी आयुर्वेद में तुलसी को औषधि के रूप में देखा जाता है।
आयुर्वेद में उल्लेख है कि मलेरिया, मोतीझला, मियादी बुखार, खांसी-जुकाम के अलावा मानसून के साथ आने वाली कई जटिल बीमारियों से बचाव के लिए तुलसी का प्रयोग सबसे कारगर साबित होता है। तुलसी का काढ़ा बनाकर या फिर चाय आदि में डालकर अगर हर व्यक्ति इसका प्रतिदिन प्रयोग करे तो संक्रामक रोगों से ग्रसित नहीं हो सकता। डॉ. शर्मा का कहना है मानसून बदलाव के साथ फैलने वाले हर संक्रमण से लड़ने की क्षमता तुलसी में है। इसलिए तुलसी का प्रयोग हर व्यक्ति को करते रहना चाहिए। यही कारण है कि ब्रज के हर घर में तुलसी का पौधा जरूरी होता है। इसके साथ मान्यता भले ही धार्मिक हो, लेकिन वर्तमान में तुलसी का प्रयोग लोगों के लिए स्वास्थ्य वर्धक साबित हो सकता है।