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लगातार तीसरी बार, फसल पर कुदरती मार

जागरण संवाददाता, मथुरा: किसानों की किस्मत वाकई कुदरत के हाथ में होती है। इस रबी के सीजन में बारिश और

By Edited By: Published: Wed, 04 Mar 2015 11:38 PM (IST)Updated: Wed, 04 Mar 2015 11:38 PM (IST)
लगातार तीसरी बार, फसल पर कुदरती मार

जागरण संवाददाता, मथुरा: किसानों की किस्मत वाकई कुदरत के हाथ में होती है। इस रबी के सीजन में बारिश और ओलों से बर्बाद हुई गेहूं, आलू, सरसों व जौ की फसलों को देख किसान सदमे में दम तोड़ रहे हैं। यह सदमा इसलिए नहीं कि इस बार उनकी मेहनत पर पानी फिर गया, बल्कि इसलिए कि कुदरत का यह कहर उन पर लगातार तीसरी बार बरपा है।

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पिछले वर्ष रबी की फसलों ने लगातार प्रकृति के प्रहार सहे थे। खूब बारिश हुई थी, खेतों में पानी खड़ा रहने से फसलें गलकर नष्ट हो गई थीं। फिर तेज अंधड़ के साथ जमकर ओलावृष्टि हुई थी, जिसमें तमाम जीव-जंतु काल कलवित हुए थे। साथ ही आलू, सरसों और गेहूं की फसलों को बहुत नुकसान पहुंचा था। तब किसान कर्ज में डूब गए थे, क्योंकि वह बची फसल बेचकर भी कर्जा नहीं चुका पाए थे। रबी की फसलों से चोट खाए किसानों को फिर खरीफ की फसलों से उम्मीद जगी और अधिकतर किसानों ने खेतों में धान की पौध रोपी, लेकिन खरीफ के सीजन में न सिर्फ बादलों ने धोखा दिया बल्कि नहर, रजवाहों के गले भी सूख गए थे। ट्यूबवेल से सिंचाई करने के लिए बिजली की आपूर्ति भी ठीक से नहीं हो सकी। नतीजतन खरीफ की धान, ज्वार, बाजरा, तिल, मूंग, उड़द आदि फसलें पानी के अभाव में नष्ट हो गई।

अब तीसरी बार भी किसानों को बारिश-ओलों की मार सहनी पड़ रही है। लगातार कुदरती मारों से कराह रहे किसान आत्महत्या को विवश हैं। कर्ज पर कर्ज लदा जा रहा है और उम्मीद की कोई किरण दिखाई नहीं दे रही है। ऐसे में किसान करें भी तो क्या। हुक्मरान आंकड़ों की बाजीगरी में उलझे हुए हैं और नुमाइंदों जो खेत-खलियान की सुध लेने की फुर्सत तक नहीं है। लगता है कि किसानों का दर्द समझने वाला शायद कोई नहीं बचा है।


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