Move to Jagran APP

देवभूमि में शिक्षा की 'देवी'

रसिक बिहारी शर्मा, मथुरा (गोवर्धन): देव भूमि धर्म की अलख से रोशन थी। हां, यहां शिक्षा के घनघोर अंधेर

By Edited By: Published: Thu, 02 Oct 2014 01:14 AM (IST)Updated: Thu, 02 Oct 2014 01:14 AM (IST)
देवभूमि में शिक्षा की 'देवी'

रसिक बिहारी शर्मा, मथुरा (गोवर्धन): देव भूमि धर्म की अलख से रोशन थी। हां, यहां शिक्षा के घनघोर अंधेरे से देवी सरस्वती दूर-दूर थीं। ऐसे में नई जोत जलाने के लिए भगवान देवी ने घर से कदम बाहर निकाले। यह क्या, ऐसे शुभकार्य में भी हर कदम पर तानों की बेड़ियां उनकी चाल रोकती थीं। अकेले चना भाड़ नहीं फोड़ता के ताने हौसले को भेदते थे। मगर हिम्मत कामरहम था, जिससे तानों के जख्म सूखते गए। आखिर भगवान देवी ने दिखा दिया कि वाकई वह देवी हैं। मानसी गंगा के तट पर बहने वाली शिक्षा की धारा अविरल होती गई। घर से बुलाकर पढ़ाए चार बच्चों से अलख ऐसी जगी कि देवभूमि में शिक्षा का उजियारा फैल गया। उम्र के 73वें पड़ाव पर पहुंच गई भगवान देवी अब भी इस कार्य में जी-जान से जुटी हैं।

loksabha election banner

भरतपुर के बल्लभगढ़ से वर्ष 1956 में गोवर्धन में ब्याह कर आईं भगवान देवी शर्मा ने इंटर पास की थी। देव भूमि में जब शिक्षा की स्थिति देखी, तो दिल में पीड़ा हुई। कृषक पति राममूर्ति शर्मा को उन्होंने अपने मन की बात बताई कि वह बच्चों को पढ़ाना चाहती हैं। शिक्षा की मुहिम में पति ने पूरा साथ दिया। इसके बाद उन्होंने घर से ही शिक्षा का सपना साकार करने की ठान ली। पड़ोस के चार -पांच बच्चों को घर पर बुलाकर उन्हें निश्शुल्क पढ़ाने लगीं। महिला द्वारा स्कूल खोलने की बातें सुनने वाले लोग उन्हें तरह-तरह के ताने देते, मगर वे लक्ष्य से नहीं डिगीं। घर पर पढ़ने के लिए आने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती गई। इसके साथ ही भगवान देवी ने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। मथुरा से बीटीसी की डिग्री हासिल कर ली, मगर सरकारी नौकरी नहीं की।

1970 में भगवान देवी शर्मा ने अपने लक्ष्य को बड़ा कर लिया। मानसी गंगा के तट पर किराए के मकान में शिक्षा का मंदिर खड़ा कर दिया और उसका नाम आदर्श शिक्षा निकेतन दिया। चेहरे पर रुआब और कड़क आवाज वाली भगवान देवी शर्मा का पढ़ाने का अंदाज धीरे-धीरे लोकप्रिय होने लगा और आसपास के अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजने लगे। सन्1984 में पति राममूर्ति शर्मा की मृत्यु के उपरात उनके सामने बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी आई, लेकिन बुलंद इरादों के साथ खड़ी इस महिला ने अपनी शिक्षा की इमारत को ढहने नहीं दिया। परिवार और शिक्षा के मंदिर को बखूबी संभालकर नए आयाम स्थापित किए। चार-पाच बच्चों से शुरू शिक्षा का सफर आज सागर बन गया।

भगवान देवी बताती हैं मुझे आज भी याद है कि लोग कहते थे बहू घर ते बाहर जाके पढ़ावैगी? तरह-तरह के ताने भी दिए जाते थे। मगर मुझे तो अपना काम करना था। गोवर्धन महाराज की कृपा से लक्ष्य हासिल कर लिया।

कॉलेज बन गया स्कूल

छोटा सा स्कूल अब इंटर कॉलेज में परिवर्तित हो चुका है, लेकिन लड़कियों को शिक्षित करने के लिए भगवान देवी आज भी प्रयासरत नजर आती हैं। आदर्श कामिनी ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज में आज करीब साढ़े आठ सौ लड़किया शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। किराए की भूमि में चलने वाला स्कूल अब अपनी निजी भूमि पर है। आज भी जब भगवान देवी स्कूल में कदम रखती हैं, तो अनुशासन उनके सामने हाथ जोड़े खड़ा नजर आता है और हर कोई अपने काम को समय से निबटाने में जुट जाता है। एक बेटा स्कूल संभालता है और दूसरा निजी काम करता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.